एक पल का एहसास बनकर आते हो तुम,
दूसरे ही पल खुवाब बनकर उड़ जाते हो तुम,
जानते हो की लगता है डर तन्हाइयों से,
फिर भी बार बार तनहा छोड़ जाते हो तुम।
जिंदगी ख्वाहिशों का एक मेला है,
कहीं पर हार तो कहीं पर जीत का ये खेला है,
जो भी मिले उससे तुम मुस्कुरा कर मिला करो,
इस भीड़ में हर कोई ही अकेला है।
उसकी आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियों की आदत सी हो गयी है,
न शिकवा रहा न शिकायत किसी से,
बस एक मोहब्बत है, जो इन तन्हाइयों से हो गई है।
जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था,
ढूँढ़ने निकला था जिसको बस वही चेहरा न था,
हम वही, तुम भी वही, मौसम वही, मंज़र वही,
फ़ासले बढ़ जायेंगे इतने मैंने कभी सोचा न था।
कोई नहीं होता हमेशा के लिए किसी का,
लिखा है साथ थोड़ा-थोड़ा इस दुनिया में सभी का,
मत बनाओ किसी को अपने जीने की वजह,
क्योंकि बाद में जीना पड़ता है अकेले ही उसूल है जिन्दगी का।
जमाना सो गया और मैं जगा रातभर तन्हा,
तुम्हारे गम से दिल रोता रहा रातभर तन्हा,
मेरे हमदम तेरे आने की आहट अब नहीं मिलती,
मगर नस-नस में तू गूंजती रही रातभर तन्हा।
उम्मीद तो मंज़िल पे पहुँचने की बड़ी थी,
तक़दीर मगर न जाने कहाँ सोयी पड़ी थी,
खुश थे कि गुजारेंगे रफाकत में सफ़र,
तन्हाई मगर बाहों को फैलाये खड़ी थी।
तुम जब आओगे तो खोया हुआ पाओगे मुझे,
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं,
मेरे कमरे को सजाने कि तमन्ना है तुम्हें,
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।
कांटो सी चुभती है तन्हाई,
अंगारों सी सुलगती है तन्हाई,
कोई आ कर हमें ज़रा हँसा दे,
मैं रोता हूँ तो रोने लगती है तन्हाई।
जब महफ़िल में भी तन्हाई पास हो,
रोशनी में भी अँधेरे का एहसास हो,
तब किसी खास की याद में मुस्कुरा दो,
शायद वो भी आपके इंतजार में उदास हो।
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है,
मैं किसी तरह गुजारूँगा चला जाऊंगा,
तुम परेशाँ न हो बाब-ए-करम-वा न करो,
और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा।
छोड दो तन्हाई में मुझको यारो,
साथ मेरे रहकर क्या पाओगे,
अगर हो गई आपको भी मोहब्बत कभी,
मेरी तरह तुम भी पछताओगे।
ए ज़िन्दगी एक बार तू नज़दीक आ तन्हा हूँ मैं,
या दूर से फिर दे कोई सदा तन्हा हूँ मैं,
दुनिया की महफ़िल मैं कहीं मैं हूँ भी या नहीं,
एक उम्र से इस सोच में डूबा हुआ हूँ मैं।
आगोश में ले लो मुझे बहुत अकेला हूँ मैं,
बसा लो दिल की धड़कन में अकेला हूँ मैं,
जो तुम नहीं ज़िन्दगी में तो फिर कुछ भी नहीं,
समा जाओ मुझमें कि अकेला हूँ मैं।
आपको खोने का हर पल डर लगा रहता है,
जबकि आपको पाया ही नहीं,
तुम बिन इतना तन्हा हूँ मैं,
कि मेरे साथ मेरा साया भी नहीं।
लेकर दिल वो चला गया
खुद का दिल उसने दिया ही नहीं,
जिस दिन से छोड़ गया अकेला
उस दिन से मै जिया ही नहीं।
फिर कहीं दूर से एक बार सदा दो मुझको,
मेरी तन्हाई का एहसास दिला दो मुझको,
तुम तो चाँद हो तुम्हें मेरी ज़रुरत क्या है,
मैं दिया हूँ किसी चौखट पे जला दो मुझको।
अपनी बेबसी पर आज रोना आया,
दूसरों को क्या मैंने तो अपनों को भी आजमाया,
हर दोस्त की तन्हाई हमेशा दूर की मैंने,
लेकिन खुद को हर मोड़ पर हमेशा अकेला पाया।
लौट आओ और मिलो उसी तड़प से,
अब तो मुझे मेरी वफाओं का सिला दे दो,
देखे है बहुत इसने तन्हाई के मौसम,
अब तो मेरे दिल को अपने दिल से मिला दो।
जिंदगी के ज़हर को यूँ हँस के पी रहे है,
तेरे प्यार बिना यूँ ही ज़िन्दगी जी रहे है,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रहे है।