किसी के पैरो मे गिरकर क़ामयाबी पाने से अच्छा है,
अपने पैरो पर चलकर कुछ बनने की ठान लों…!

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लोग वाकिफ है मेरी आदतो से,
रूतबा कम ही सही पर लाजवाब रखता हूँ…!

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सही वक्त पर करवा देंगे हदों का अहसास,
कुछ तालाब खुद को समंदर समझ बैठे हैं…!

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किसी की क्या मजाल थी जो खरीद सकता हमको,
वो तो हम ही बिक गए खरीदार देख कर…!

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तुम सिखाओ अपने दोस्तों को हथियार चलाना,
हमारे दोस्त तो पहले से ही बारूद है…!

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डूब जाए आसानी से मैं वो कश्ती नहीं,
मिटा सको तुम मुझे ये बात तुम्हारे बस की नहीं…!

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इतना अमीर नहीं हूँ कि सब कुछ खरीद लूँ,
लेकिन इतना गरीब भी नहीं हूँ कि खुद बिक जाऊं…!

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हमारी अफवाह के धुंए वही से उठते है,
जहाँ हमारे नाम से आग लग जाती है…!

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