वाक़िफ़ कहाँ दुश्मन, अब हमारी उड़ान से,
वो कोई और थे, जो हार गए तूफान से…!

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जीत हासिल करनी हो तो क़ाबिलियत बढ़ाओ,
क़िस्मत की रोटी तो कुत्तों को भी मिला करती है…!

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अजीब सा ख़ौफ़ था उस शेर की आँखों में,
जिसने जंगल में हमारे जूतों के निशान देखे थे…!

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जानता हूँ मैं कहाँ तक है उड़ान इनकी,
आखिर मेरे ही हाथ से निकले परिंदें है ये…!

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हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज़ पुराना ही होगा…!

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नया नया है तू बेटे,
मैंने खेल पुराने खेले है,
जिन लोगों के दम पर उछलता है तू,
मेरे पुराने वो चेले है…!

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जब महसूस हो सारा शहर तुमसे जलने लगा,
समझ लेना तुम्हारा नाम चलने लगा…!

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Attitude जो कल था वो आज है,
जिंदगी ऐसे जियों जैसे बाप का राज है…!

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