अकेलेपन का अज़्मी हो भी तो एहसास कैसे हो,
तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है।
मेरे अकेलेपन ने भी क्या खूब साथ निभाया इस ज़िन्दगी में,
कि अब तो आलम ये है कि हम दीवारों से भी बातें करते हैं।
मैं अकेलेपन में खुद को तुमसे छिपाते जा रहे हूँ,
अपनी ही नजरों में खुद को गिराते जा रहा हूँ।
हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
अब इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
खामोशी एक हालत सी हो गई है,
ना शिकवा ना शिकायत है किसी से,
क्यूंकी अब अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
लिखने का कोई शौक नहीं मुझे,
बस खुद को यु उलझाए रखा है इसमें,
क्योंकि इस अकेलेपन में तो बस,
सिर्फ उसकी याद आती हैं।
कल भी हम तेरे थे, आज भी हम तेरे है,
बस फर्क इतना है,
पहले अपनापन था, अब अकेलापन है।
भीड़ में ये अकेलापन मुझसे मिलने जब आया,
क्या है ये अकेलापन मुझे समझ में तब आया।
हमारे इस अकेलेपन ने हमें जीना सीखा दिया,
बची हमारी ये हसीं तो उसे हमनें पहले ही भुला दिया।