सूने घरों में रहने वाले कुंदनी चेहरे कहते हैं,
सारी सारी रात अकेलेपन की आग जलाती है।
दीप रातों को जलाके रखिये,
फूल काँटों में खिलाके रखिये,
जाने कब घेर ले अकेलापन,
एक-दो दोस्त बनाके रखिये।
अकेलापन एक सज़ा सी है,
लेकिन इसमें जीने में भी अपना अलग ही मज़ा है।
जनाब इतने मतलबी भी मत बन जाओ,
कि तुम्हें अब दूसरों का अकेलापन भी नजर ना आ पाए,
और इतना अच्छा भी मत बन जाओ,
कि तुम्हें दूसरों की बुराई भी नजर ना आ पाए।
उफ़, अकेलापन ये कितना बढ़ गया है,
सबके मोबाइल में केवल सेल्फ़ियाँ हैं।
हमारे इस अकेलेपन ने हमें जीना सीखा दिया,
बची हमारी ये हसीं तो उसे हमनें पहले ही भुला दिया।
भीड़ में ये अकेलापन मुझसे मिलने जब आया,
क्या है ये अकेलापन मुझे समझ में तब आया।
कल भी हम तेरे थे, आज भी हम तेरे है,
बस फर्क इतना है,
पहले अपनापन था, अब अकेलापन है।
लिखने का कोई शौक नहीं मुझे,
बस खुद को यु उलझाए रखा है इसमें,
क्योंकि इस अकेलेपन में तो बस,
सिर्फ उसकी याद आती हैं।
अब इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
खामोशी एक हालत सी हो गई है,
ना शिकवा ना शिकायत है किसी से,
क्यूंकी अब अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
मैं अकेलेपन में खुद को तुमसे छिपाते जा रहे हूँ,
अपनी ही नजरों में खुद को गिराते जा रहा हूँ।
मेरे अकेलेपन ने भी क्या खूब साथ निभाया इस ज़िन्दगी में,
कि अब तो आलम ये है कि हम दीवारों से भी बातें करते हैं।
अकेलेपन का अज़्मी हो भी तो एहसास कैसे हो,
तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है।
तन्हा दिन, तन्हा रातें,
अकेलेपन में भी, याद आती हैं सिर्फ तेरी बातें,
कोशिश कर लूं छुपाने की,
पर बाहर आ ही जाती हैं जज़्बातें।
अकेलेपन से दिल जाने क्यूँ घबरा रहा है,
मुझें वो तेरी बातें फिर से याद दिला रहा है।
बढ़ती नजदीकियों को अक्सर जुदाई में बदलते देखा है,
आज सोचा अपने अकेलेपन से नजदीकी बढ़ा के तो देखूं।
अकेलापन दिलजलों को खूब भाता है,
यादों के मारों को सुकून, तन्हाई में ही मिल पाता है।
अब मुझे रास आ गया है अकेलापन,
अब आप अपने वक्त का अचार डालिए।
ये अकेलापन सभी को काटता है,
पर न कोई इसको बाँटता है,
अगर जो कोई चाहे इसको बाँटना,
बुरा भला कह कर सब कोई डाँटता है।
इस अकेलेपन में भी कितनी वफादारी है,
मुझे कभी अकेला नही छोड़ता ये अकेलापन।
जनाब खुद से खुद की पहचान
करा देता है ये अकेलापन,
लोगो के बीच आपकी एक अलग सी
पहचान बना देता है ये अकेलापन।
मुझे मेरा अकेलापन ही कुछ ज्यादा भाता है,
इन खोखले बनावटी रिश्तों के बीच दिल घबराता है।
इस चार दिन की जिंदगी में,
हम अकेले रह गए,
मौत का इंतजार करते करते,
अकेलेपन से मोहब्बत कर गए।
अकेलापन क्या होता है कोई ताजमहल से पूछे,
देखने के लिए पूरी दुनिया आती है लेकिन रहता कोई नही।
अजीब है मेरा अकेलापन,
ना खुश हूँ ना उदास हूँ,
बस खाली हूँ और खामोश हूँ।
क्या कहें जनाब कि अकेलापन क्यों इतना भाता है,
खुद से बातों में अक्सर यू ही वक्त गुज़र जाता है।
क्या कहें कि अकेलापन क्यों मुझे इतना भाता है,
खुद से बातों में अक्सर मेरा वक्त गुज़र जाता है।
वो दूर का सितारा दूर हो कर भी,
अब अपना सा लगता है,
क्यूंकि जनाब मेरे इस अकेलेपन को वो,
अकेलापन मेहसूस ही नहीं होने देता है।
तुम्हारे जाने के बाद हम कभी,
अकेलापन महसूस ही नहीं कर पायें,
क्या करते कमबख्त तनहाईयों को,
मोहब्बत जो हो गई है हमसे।