अक्सर वही लोग उठाते है हम पर उंगलिया,
जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती।

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इतने अमीर तो नहीं कि सब कुछ खरीद ले,
पर इतने गरीब भी नहीं हुए कि खुद बिक जाएँ।

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सुधरी हे तो बस मेरी आदते वरना मेरे शौक,
वो तो आज भी तेरी औकात से ऊँचे है।

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अकड़ तोड़नी है उन मंजिलों की,
जिनको अपनी ऊंचाई पर गरूर है।

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हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए,
हमे दुश्मन भी थोडा खानदानी चाहिए।

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पुरे शहर में नाम चलता है, फोटो छपे है थाने में,
शेर जैसा जिगरा चाहिये, हमको हाथ लगाने में।

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शेर खुद अपनी ताकत से राजा कहलाता है,
जंगल मे चुनाव नही होते।

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बहुत कर लिया शेरों ने राज़, अब आई है मेरी बारी,
अब मैं करूँगा आज से शिकार।

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किसी के पैरो में गिरकर कामयाबी पाने के बदले,
अपने पैरो पर चलकर कुछ बनने की ठान लो।

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