मीठी सी खुशबू में रहते है गुमसुम,
अपने अहसास से बाँट लो तन्हाई मेरी।
वहां से बिगड़ी है ज़िंदगी मेरी,
जहाँ से साथ तुमने छोड़ा था।
एक तुम्हीं थे जिसके दम पे चलती थी साँसें मेरी,
लौट आओ कि ज़िंदगी से वफ़ा निभाई नहीं जाती।
सच कहा था किसी ने तन्हाई में जीना सीख लो,
मोहब्बत जितनी भी सच्ची हो साथ छोड़ ही जाती है।
महफ़िल से दूर मैं अकेला हो गया,
सूना सूना मेरे लिए हर मेला हो गया।
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद ना कर दे,
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर।
मुझको मेरी तन्हाई से अब शिकायत नहीं है,
मैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मोहब्बत नहीं है।
जा रही हो सोने तो जाओ तुम, मैं आऊंगा तेरे ख़्वाओ में,
छोड़ना नही तुम मुझे अकेला, लिपटा लेना अपनी बाँहो में।
किसके साथ चलूं, किसकी हो जाऊं,
बेहतर है अकेली रहूँ और तन्हा हो जाऊं।