अजीब सी बेताबी रहती है तेरे बिना,
रह भी लेते हैं और रहा भी नहीं जाता।
जब से देखा है चाँद को तन्हा,
तुम से भी कोई शिकायत ना रही।
एक उम्र है जो तेरे बगैर गुजारनी है,
और एक लम्हा भी तेरे बगैर गुजरता नहीं।
मैं भी तनहा हूँ और तुम भी तन्हा,
वक़्त कुछ साथ गुजारा जाए।
बंद मुट्ठी से याद गिरती है रेत की मानिंद,
वो चला गया ज़िन्दगी से ज़र्रा-ज़र्रा कर के।
दिल को आता है जब भी ख्याल उनका,
तस्वीर से पूछते है फिर हाल उनका।
रोते है तनहा देख कर मुझको वो रास्ते,
जिन पे तेरे बगैर मैं गुजरा कभी न था।
मेरा और उस चाँद का मुकद्दर एक जैसा है,
वो तारों में तन्हा है और मैं हजारों में तन्हा।