जब रहना है तनहा, तो फिर रोना कैसा,
जो था ही नहीं अपना, उसे खोना कैसा।

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सहारा लेना ही पड़ता है मुझको दरिया का,
मैं एक कतरा हूँ तनहा, तो बह नहीं सकता।

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हम अपनी हस्ती मिटा कर भी तनहा है,
सब कुछ लुटा कर भी तनहा है।

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तेरी यादों के पलकों पे दिन ढलती है,
अब ये सफर बहुत तनहा चलती है।

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न ढूंढ मेरा किरदार दुनिया की भीड़ में,
वफादार तो हमेशा तन्हा ही मिलते है।

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अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ अकेले में,
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने।

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चला जाऊंगा जैसे खुद को तनहा छोड़ कर,
मैं अपने आपको रातों में उठकर देख लेता हूँ।

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आज मैं अकेला हूँतो क्या हुआ,
एक दिन उसको भी मेरे बिना सब सुना सा लगेगा।

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