खिलाफ कितने हैं ये मुद्दा नहीं बस साथ कितने हैं ये जरूरी हैं।

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किसी का दिल ना दुखाओ, क्योंकि तुम भी दिल रखते हो।

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नज़र अंदाज़ करते है वो, मतलब हम नज़र में तो है।

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लिखते जा रहे हो साहब मोहब्बत हो गई, या खो गई है।

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ना अर्ज़ है ना अर्जी है, इश्क की अपनी मनमर्जी है।

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मसला मेरे दर्द का नहीं, मुद्दा तेरी परवाह की है मेरे दोस्त।

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कोई रोता बस उसीके लिए है जिससे वो सच्चा प्यार करता है।

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यादें क्यों नहीं बिछड़ जाती, लोग तो पल में बिछड़ जाते हैं।

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मक्खन लगाने वाले लोग ही अक्सर चुना लगा जाते है।

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