सभी एक जैसा ही लिखते हैं,
बस मतलब बदल जाते हैं,
सरकारे वैसे ही चलती हैं,
बस वजीर-ए-आजम बदल जाते हैं।
अपने मतलब के लिये लोग, कितना बदल जाते हैं,
वे अपनों को पीछे धकेल कर, आगे निकल जाते हैं,
कोई मरता भी हो तो उनकी बला से,
वो तो लाशों पर पाँव रखकर, आगे निकल जाते हैं।
निकल गया मतलब या और कोई काम लोगे,
बदनाम तो हो ही गये हैं और कितना नाम लोगे।
तमन्ना जो आये ख्वाबो में,
हकिकत बन जाए तो क्या बात है,
कुछ लोग मतलब के लिए ढुढते हैं मुझे,
बिन मतलब कोई आये तो क्या बात है।
मतलब का भार, काफी ज्यादा होता है,
तभी तो मतलबी निकलते है, तो रिश्ते हल्के हो जाते हैं।
जरूरत और मतलब के हिसाब से सब बदल जाता है,
अब देखो न इंसान उड़ने के लिये पंख चाहता है,
और परिदें रहने को घर।
किसी के साथ रहना है तो ख़ुशी से रहो,
मज़बूरी से साथ रहने का कोई मतलब नहीं।
सब मतलब की यारी है,
यही दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी है।
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है,
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है।
कीमती हैं सिक्के, ईमान सस्ता है,
यहां रिश्तों का मतलब ही, मतलब का रिश्ता है।