दुखो के बोझ में ज़िन्दगी कुछ इस तरह डूबे जा रही है,
की मेरी हर एक चाहत, हर एक आस टूटे जा रही है।
कुछ आग आरज़ू की, उम्मीद का धुआँ कुछ,
हाँ राख ही तो ठहरा अंजाम ज़िन्दगी का।
शायद यही ज़िंदगी का इम्तिहान होता है,
हर एक शख्स किसी का गुलाम होता है,
कोई ढूंढता है ज़िंदगी भर मंज़िलों को,
कोई पाकर मंज़िलों को भी बेमुकाम होता है।
ज़रूरी तो नहीं के शायरी वो ही करे जो इश्क में हो,
ज़िन्दगी भी कुछ ज़ख्म बेमिसाल दिया करती है।
मंजिलें मुझे छोड़ गयी रास्तों ने संभाल लिया,
जिंदगी तेरी जरूरत नहीं मुझे हादसों ने पाल लिया।
ज़िन्दगी कभी आसान नही होती,
इसे आसान करना पड़ता है,
कुछ नजर अंदाज करके कुछ को बर्दास्त करके।
उम्र छोटी है तो क्या,
ज़िंदगी का हर एक मंज़र देखा है,
फरेबी मुस्कुराहटें देखी है,
बगल में खंजर भी देखा है।
जब भी सुलझाना चाहा,
ज़िंदगी के सवालों को मैंने,
हर एक सवाल में जिंदगी
मेरी उलझती चली गई।
वो हर बार अगर चेहरा बदल कर न आया होता,
धोखा मैंने उस शख्स से यूँ न खाया होता,
रहता अगर याद कर मुझे लौट के आती नहीं,
ज़िन्दगी फिर मैंने तुझे यूं न गंवाया होता।
रोज़ दिल में हसरतों को जलता देखकर,
थक चुका हूँ ज़िन्दगी का ये रवैया देखकर।