समझ में नहीं आता जिन्दगी में उलझन है,
या उलझन ही अपनी बन गई जिन्दगी है।
दुनिया में सैकड़ों दर्दमंद मिलते है,
पर काम के लोग चंद मिलते है,
जब मुसीबत का वक़्त आता है,
सब के दरवाजे बंद मिलते है।
वो हर बार अगर चेहरा बदल कर न आया होता,
तो धोखा उस शख्स से मैं यूँ न खाया होता,
रहता अगर याद कर मुझे लौट के आती नहीं,
ज़िन्दगी फिर मैंने तुझे यूं न गंवाया होता।
अपनी ज़िंदगी में भी लिखे है कुछ ऐसे किस्से,
किसी ने अपना बना कर वक़्त गुज़ार लिया,
किसी ने वक़्त गुज़ारने के लिए अपना बना लिया।
मायने ज़िन्दगी के बदल गये अब तो,
कई अपने मेरे बदल गये अब तो,
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुकर गये अब तो।
जितने दिन तक जी गई बस उतनी ही है जिन्दगी,
मिट्टी के गुल्लकों की कोई उम्र नहीं होती।
जो मिला कोई न कोई सबक दे गया,
अपनी ज़िन्दगी में हर कोई गुरु निकला।
छोटी सी जिंदगी है अरमान बहुत है,
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत है,
दिल का दर्द सुनाए तो किसको,
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है।
ख़्वाबों से मुझको और न बहला सकेगी,
रहने दे ज़िन्दगी, तेरा जादू उतर गया।
कुछ तो है जो बदल गया जिन्दगी में मेरी,
अब आइने में चेहरा मेरा हँसता हुआ नज़र नहीं आता।