हौसले जिंदगी के देखते है,
चलिए कुछ रोज जी के देखते है,
नींद पिछली सदी की जख्मी है,
ख़्वाब अगली सदी के देखते है।
यूं तो जिंदगी में आवाज़ देने वाले,
ढेरों मिल जाते है,
लेकिन हम ठहरते वहीं है,
जहाँ अपनेपन का एहसास होता है।
ख़्वाबों से मुझको और न बहला सकेगी,
रहने दे ज़िन्दगी, तेरा जादू उतर गया।
शुक्रिया ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया,
कैसे बदलते हैं लोग चंद कागज़ के टुकड़ो ने बता दिया,
अपने परायों की पहचान को आसान बना दिया,
शुक्रिया ऐ ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया।
वो जिसकी याद मे हमने
खर्च दी जिन्दगी अपनी,
वो शख्श आज मुझको
गरीब कह के चला गया।
ज़िन्दगी तुझसे हर एक साँस पे समझौता करूँ,
शौक़ जीने का है मुझको मगर इतना तो नहीं,
रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिली,
तुझको महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं।
नज़रों से दूर सही दिल के बहुत पास है तू,
बिखरी हुई इस ज़िन्दगी में मेरे जीने की आस है तू।
मेरे बेजुबा इश्क को गम का तोहफा दे गई,
जिंदगी बन कर आई थी और जिंदगी ही ले गई।
जितने दिन तक जी गई बस उतनी ही है जिन्दगी,
मिट्टी के गुल्लकों की कोई उम्र नहीं होती।
डरते है आग से कही जल न जाये,
डरते है ख्वाब से कहीं टूट न जाये,
लेकिन सबसे ज़्यादा डरते है आपसे,
कहीं आप हमें भूल न जाये।
ज़िंदगी में सारा झगड़ा ही ख्वाहिशों का है,
ना तो किसी को गम चाहिए,
और ना ही किसी को कम चाहिए।
अब तो अपनी तबियत भी जुदा लगती है
सांस लेता हूँ तो ज़ख्मों को हवा लगती है
कभी राजी तो कभी मुझसे खफा लगती है
जिंदगी तू ही बता तू मेरी क्या लगती है।
बदल जाती है ज़िन्दगी की सच्चाई उस वक़्त,
जब कोई तुम्हारा तुम्हारे सामने तुम्हारा नही होता।
आँखों को अश्क का पता न चलता,
दिल को दर्द का एहसास न होता,
कितना हसीन होता जिंदगी का सफ़र,
अगर मिलकर कभी बिछड़ना न होता।
मायने ज़िन्दगी के बदल गये अब तो,
कई अपने मेरे बदल गये अब तो,
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुकर गये अब तो।
छोटी सी जिंदगी है अरमान बहुत है,
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत है,
दिल का दर्द सुनाए तो किसको,
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है।
कुछ हक़ीक़त कुछ सपने दिखाए,
कुछ पराये कुछ अपने दिखाए,
मुझे नफ़रत है इन सब से,
ए ज़िन्दगी बता क्या ये सब मेरे रब ने दिखाए।
समझ में नहीं आता जिन्दगी में उलझन है,
या उलझन ही अपनी बन गई जिन्दगी है।
ऐ ज़िन्दगी इतने भी दर्द न दे कि मैं बिखर जाऊं,
ऐ ज़िन्दगी इतने भी ग़म न दे कि ख़ुशी भूल जाऊं,
ऐ ज़िन्दगी इतने भी आँसू न दे कि मैं हँसना भूल जाऊं,
इतने भी इम्तिहान न ले कि मैं हार के जीना भूल जाऊं।
न जाने जिंदगी का ये कैसा दौर है,
इंसान खामोश है,
और ऑनलाइन कितना शोर है।