ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है,
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है।
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी,
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे।
कभी आंसू तो कभी ख़ुशी देखी,
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी,
उनकी नाराज़गी को हम क्या समझे,
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी।
शुक्रिया ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया,
कैसे बदलते हैं लोग चंद कागज़ के टुकड़ो ने बता दिया,
अपने परायों की पहचान को आसान बना दिया,
शुक्रिया ऐ ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया।
कुछ हक़ीक़त कुछ सपने दिखाए,
कुछ पराये कुछ अपने दिखाए,
मुझे नफ़रत है इन सब से,
ए ज़िन्दगी बता क्या ये सब मेरे रब ने दिखाए।
हमारा कोई अपना बन जाता,
बंद आँखों का सपना बन जाता,
ज़िन्दगी के लिए हम अँधेरे बन गए कि,
कहीं अँधेरा ही मेरी ज़िन्दगी का गुनाह न बन जाता।
छोटी सी जिंदगी है अरमान बहुत है,
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत है,
दिल का दर्द सुनाए तो किसको,
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है।
अपनी ज़िंदगी में भी लिखे है कुछ ऐसे किस्से,
किसी ने अपना बना कर वक़्त गुज़ार लिया,
किसी ने वक़्त गुज़ारने के लिए अपना बना लिया।
ज़िन्दगी से अपना हर दर्द छुपा लेना,
ख़ुशी ना मिले तो ग़म गले लगा लेना,
कोई अगर कहे मोहब्बत आसान होती है,
तो उसे मेरा टूटा हुआ दिल दिखा देना।
मेरे बेजुबा इश्क को गम का तोहफा दे गई,
जिंदगी बन कर आई थी और जिंदगी ही ले गई।
हौसले जिंदगी के देखते है,
चलिए कुछ रोज जी के देखते है,
नींद पिछली सदी की जख्मी है,
ख़्वाब अगली सदी के देखते है।
डरते है आग से कही जल न जाये,
डरते है ख्वाब से कहीं टूट न जाये,
लेकिन सबसे ज़्यादा डरते है आपसे,
कहीं आप हमें भूल न जाये।
मायने ज़िन्दगी के बदल गये अब तो,
कई अपने मेरे बदल गये अब तो,
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुकर गये अब तो।
पढ़ने वालों की कमी हो गयी है
आज इस ज़माने में,
वरना मेरी ज़िन्दगी का हर पन्ना,
पूरी किताब है।
बदल जाती है ज़िन्दगी की सच्चाई उस वक़्त,
जब कोई तुम्हारा तुम्हारे सामने तुम्हारा नही होता।
वो हर बार अगर चेहरा बदल कर न आया होता,
तो धोखा उस शख्स से मैं यूँ न खाया होता,
रहता अगर याद कर मुझे लौट के आती नहीं,
ज़िन्दगी फिर मैंने तुझे यूं न गंवाया होता।
बहुत सा पानी छुपाया है मैंने अपनी पलकों में,
जिंदगी लम्बी बहुत है क्या पता कब प्यास लग जाए।
ज़िन्दगी में ख़ुशी नहीं गम पड़ गए,
आँखों से निकले आंसूं भी नम पड़ गए,
वक़्त ही कुछ ऐसा पड़ा यारों कि,
बयां करने के लिए लफ्ज़ ही कम पड़ गए।
आँखों को अश्क का पता न चलता,
दिल को दर्द का एहसास न होता,
कितना हसीन होता जिंदगी का सफ़र,
अगर मिलकर कभी बिछड़ना न होता।
अब तो अपनी तबियत भी जुदा लगती है
सांस लेता हूँ तो ज़ख्मों को हवा लगती है
कभी राजी तो कभी मुझसे खफा लगती है
जिंदगी तू ही बता तू मेरी क्या लगती है।