शुक्रिया ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया,
कैसे बदलते हैं लोग चंद कागज़ के टुकड़ो ने बता दिया,
अपने परायों की पहचान को आसान बना दिया,
शुक्रिया ऐ ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखा दिया।
पढ़ने वालों की कमी हो गयी है
आज इस ज़माने में,
वरना मेरी ज़िन्दगी का हर पन्ना,
पूरी किताब है।
ज़िन्दगी तुझसे हर एक साँस पे समझौता करूँ,
शौक़ जीने का है मुझको मगर इतना तो नहीं,
रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें न मिली,
तुझको महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं।
यूं तो जिंदगी में आवाज़ देने वाले,
ढेरों मिल जाते है,
लेकिन हम ठहरते वहीं है,
जहाँ अपनेपन का एहसास होता है।
ज़िन्दगी में फूल नहीं काटें मिलते है,
ज़िन्दगी में चाहते नहीं नफरते मिलती है,
हम करे तो क्या करें ज़िन्दगी,
मंजिल आसान नहीं उसमे मुश्किलात भी मिलते है।
अब तो अपनी तबियत भी जुदा लगती है
सांस लेता हूँ तो ज़ख्मों को हवा लगती है
कभी राजी तो कभी मुझसे खफा लगती है
जिंदगी तू ही बता तू मेरी क्या लगती है।
ज़िन्दगी में ख़ुशी नहीं गम पड़ गए,
आँखों से निकले आंसूं भी नम पड़ गए,
वक़्त ही कुछ ऐसा पड़ा यारों कि,
बयां करने के लिए लफ्ज़ ही कम पड़ गए।
छोटी सी जिंदगी है अरमान बहुत है,
हमदर्द नहीं कोई इंसान बहुत है,
दिल का दर्द सुनाए तो किसको,
जो दिल के करीब है, वो अनजान बहुत है।
देखा है मैंने ज़िन्दगी को इतने करीब से,
चेहरे तमाम लगने लगे है अजीब से।
कुछ तो है जो बदल गया जिन्दगी में मेरी,
अब आइने में चेहरा मेरा हँसता हुआ नज़र नहीं आता।
नज़रों से दूर सही दिल के बहुत पास है तू,
बिखरी हुई इस ज़िन्दगी में मेरे जीने की आस है तू।