जब तक थी मर्जी तब तक खेला,
फिर तुमने मुझे परे धकेला,
साथ अब मेरे साथ मेरी कलम है,
समझो न मुझको तुम अकेला।
क्या लाजवाब था तेरा छोड़ कर जाना,
भरी भरी आँखों से मुस्कराये थे हम,
अब तो सिर्फ मैं हूँ और तेरी यादें है,
गुज़र रहे हैं यूं तन्हाई के मौसम।
यूँ सरेआम भी ना बताओ,
वरना दुनिया वाले दोनों को पागल कहेंगे,
अगर किसी और ने थमा दिया तुमको फूल,
तक हम तेरे बिना अकेले कैसे रहेंगे।
मैं जो हूँ मुझे रहने दे हवा के जैसे बहने दे,
तन्हा सा मुसाफिर हूँ मुझे तन्हा ही तू रहने दे।
जिंदगी के ज़हर को यूँ हँस के पी रहे है,
तेरे प्यार बिना यूँ ही ज़िन्दगी जी रहे है,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रहे है।
बीते हुए कुछ दिन ऐसे है
तन्हाई जिन्हें दोहराती है,
रो-रो के गुजरती है रातें
आँखों में सहर हो जाती है।
एक चाहत होती है जनाब,
अपनों के साथ जीने की,
वरना पता तो हमें भी है कि,
ऊपर अकेले ही जाना है।
जब अकेला होता हूँ,
अकसर तुम्हे बुलाता हूँ,
जब तुम नहीं आते हो,
टूटकर यादों में खो जाता हूँ।
गुजर जाती है ज़िन्दगी,
यूँ ही गुजर रहे है पल,
कोई हमसफ़र मिले न मिले,
तू अकेला ही चल।
ना जाने क्यूँ खुद को अकेला सा पाया है,
हर एक रिश्ते में खुद को गँवाया है।
शायद कोई तो कमी है मेरे वजूद में,
तभी हर किसी ने हमें यूँ ही ठुकराया है।