चले आओ इधर, कभी दो बात कर लेंगे,
जो अकेले है तुम भी, हम साथ कर लेंगे,
कुछ नहीं संबंध जगत, लिपटे नाग चंदन,
उगलो जहर तो हम, अमृत पान कर लेंगे।
जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था,
ढूँढ़ने निकला था जिसको बस वही चेहरा न था,
हम वही, तुम भी वही, मौसम वही, मंज़र वही,
फ़ासले बढ़ जायेंगे इतने मैंने कभी सोचा न था।
तन्हाई में चलते चलते
अब पैर लडखडा रहे है,
कभी साथ चलता था कोई,
अब अकेले चलें जा रहे है।
ये वक्त गुजर रहा है,
तुम भी कुछ पल चुरा लो,
कब तक अकेले रहोगे,
मेरी मानो किसी से तुम भी दिल लगा लो।
जिंदगी के ज़हर को यूँ हँस के पी रहे है,
तेरे प्यार बिना यूँ ही ज़िन्दगी जी रहे है,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रहे है।
ना जाने क्यूँ खुद को अकेला सा पाया है,
हर एक रिश्ते में खुद को गँवाया है।
शायद कोई तो कमी है मेरे वजूद में,
तभी हर किसी ने हमें यूँ ही ठुकराया है।
पास आकर सभी दूर चले जाते है,
अकेले थे हम, अकेले ही रह जाते है,
इस दिल का दर्द दिखाएँ किसे,
मल्हम लगाने वाले ही जखम दे जाते है।
गुजर जाती है ज़िन्दगी,
यूँ ही गुजर रहे है पल,
कोई हमसफ़र मिले न मिले,
तू अकेला ही चल।
ये भी शायद ज़िंदगी की इक अदा है दोस्तों,
जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया।
मैं अकेला ही भला हूँ,
किसी औऱ की उम्मीद नहीं करता,
तन्हाई रोज़ खुल कर जीता हूँ,
भीड़ से गुज़रने की जिद नहीं करता।