जरूरत और मतलब के हिसाब से सब बदल जाता है,
अब देखो न इंसान उड़ने के लिये पंख चाहता है,
और परिदें रहने को घर।
अब कहां दुआओं में वो बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें,
अब तो बस जरूरतों के जुलुस हैं, मतलबों के सलाम हैं।
अब आ भी जा फिर ये तन्हाई मिले ना मिले,
तुमसे मिलने की उमंग है, पर डर है जुदाई,
जरा बता दे प्यार का मतलब क्या है,
तू कहे, जब मतलब है तो प्यार कहाँ है।
बेमतलब की जिंदगी का सिलसिला ख़त्म,
अब जिस तरह की दुनिया उस तरह के हम।
अपने मतलब के लिये लोग, कितना बदल जाते हैं,
वे अपनों को पीछे धकेल कर, आगे निकल जाते हैं,
कोई मरता भी हो तो उनकी बला से,
वो तो लाशों पर पाँव रखकर, आगे निकल जाते हैं।
दिलों में मतलब और जुबान से प्यार करते हैं,
बहुत से लोग दुनिया में यही कारोबार करते हैं।
ज़िन्दगी का मतलब उसने सिखाया,
ज़िन्दगी से जुदा जो कर गया हमे।
सब मतलब की बात समझते हैं,
काश कोई बात का मतलब समझता।
मेरे मतलब का शख्स था वो,
अफसोस के वो भी मतलबी निकला।
माना पहुँचती नहीं तुम तक तपिश हमारी,
इसका मतलब ये नहीं है कि सुलगते नहीं हम।