तन्हाईयाँ कुछ इस तरह से डसने लगी मुझे,
मैं आज अपने पैरों की आहट से डर गया।
अब मैं अकेले नहीं बैठता कहीं,
बहुत डराती हैं तुम्हारी यादें मुझे अकेले में।
मैं किस कदर अकेला जी लेता हूँ,
हंसता रहता हूँ अपने आँसु पी लेता हूँ,
टूटा जो दिल तेरे जाने के बाद,
वो मैं अकेला बैठकर ही सी लेता हूँ।
क्या कहें बिन तेरे ये ज़िन्दगी है कैसी,
दिल को जलाती ये बेबसी है कैसी,
ना कह पाते है ना सह पाते है,
ना जाने तकदीर मैं लिखी ये तन्हाई है कैसी।
इक आग तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई,
जिस्म ही सारा जलता हो तो दिल को बचाएँ कैसे।
कैसे गुजरती है मेरी हर एक शाम तुम्हारे बगैर,
अगर तुम देख लेते तो कभी तन्हा न छोड़ते मुझे।
मेरी है वो मिसाल कि जैसे कोई दरख़्त,
चुप-चाप आँधियों में भी तन्हा खड़ा हुआ।
बिखरी किताबें भीगे पलक और ये तन्हाई,
कहूँ कैसे कि मिला मोहब्बत में कुछ भी नहीं।
आगोश में ले लो मुझे बहुत अकेला हूँ मैं,
बसा लो दिल की धड़कन में अकेला हूँ मैं,
जो तुम नहीं जिंदगी में तो फिर कुछ नहीं,
समा जाओ मुझ में कि अकेला हूँ मैं।
हम अंजुमन में सबकी तरफ देखते रहे,
अपनी तरह से कोई हमें अकेला नहीं मिला।