हम अंजुमन में सबकी तरफ देखते रहे,
अपनी तरह से कोई हमें अकेला नहीं मिला।
क्या कहें बिन तेरे ये ज़िन्दगी है कैसी,
दिल को जलाती ये बेबसी है कैसी,
ना कह पाते है ना सह पाते है,
ना जाने तकदीर मैं लिखी ये तन्हाई है कैसी।
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है,
मैं किसी तरह गुजारूँगा चला जाऊंगा,
तुम परेशाँ न हो बाब-ए-करम-वा न करो,
और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा।
मंजिल भी उसी की थी रास्ता भी उसका था,
एक हम अकेले थे काफिला भी उसका था,
साथ साथ चलने की कसम भी उसी की थी,
और रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था।
एक पल का एहसास बनकर आते हो तुम,
दूसरे ही पल खुवाब बनकर उड़ जाते हो तुम,
जानते हो की लगता है डर तन्हाइयों से,
फिर भी बार बार तनहा छोड़ जाते हो तुम।
मेरी है वो मिसाल कि जैसे कोई दरख़्त,
चुप-चाप आँधियों में भी तन्हा खड़ा हुआ।
इश्क़ खता हम दोनों ने की,
इल्जाम सारे मुझ अकेले पर लगे,
भूल ही गयी हो तुम तो,
हम क्यों तेरी याद में रात भर जगें।
उतना हसीन फिर कोई लम्हा नहीं मिला,
तेरे जाने के बाद कोई भी तुझ सा नहीं मिला,
सोचा करूं मैं एक दिन खुद से ही गुफ्तगुं,
लेकिन कभी में खुद को तन्हा नहीं मिला।
वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में सिद्दत न रही,
अपनी जिंदगी में हो गये मशरूफ वो इतना,
कि हमको याद करने कि फुरसत न रही।
कोई तो इन्तहा होगी मेरे प्यार की खुदा,
कब तक देगा तू इस कदर हमें सजा,
निकाल ले तू इस जिस्म से जान मेरी,
या मिला दे मुझको मेरी दिलरुबा।