ना जाने क्यों खुद को अकेला सा पाया है,
हर एक रिश्ते में खुद को गवाया है,
शायद कोई तो कमी है मेरे वजूद में,
तभी हर किसी ने हमें यूं ही ठुकराया है।
माना कि तुम मेरा साथ छोड़ दोगे,
ये भी बता दो की कैसे एहसास छोड़ दोगे,
ऐ राज तुम बिन जिया है, अब तक अकेले,
जो हुई थीं तुमसे कैसे वो हर बात छोड़ दोगे।
तुम जब आओगे तो खोया हुआ पाओगे मुझे,
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं,
मेरे कमरे को सजाने कि तमन्ना है तुम्हें,
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।
मैं भी तनहा हूँ और तुम भी तन्हा,
वक़्त कुछ साथ गुजारा जाए।
सहारा लेना ही पड़ता है मुझको दरिया का,
मैं एक कतरा हूँ तनहा तो बह नहीं सकता।
एक पल का एहसास बनकर आते हो तुम,
दूसरे ही पल खुवाब बनकर उड़ जाते हो तुम,
जानते हो की लगता है डर तन्हाइयों से,
फिर भी बार बार तनहा छोड़ जाते हो तुम।
जानता पहले से था मैं,
लेकिन एहसास अब हो रहा है,
अकेला तो बहुत समय से हूं मैं,
पर महसूस अब हो रहा है।
क्या हूँ मैं और क्या समझते है,
सब राज़ नहीं होते बताने वाले,
कभी तन्हाइयों में आकर देखना,
कैसे रोते है सबको हंसाने वाले।
मैं किस कदर अकेला जी लेता हूँ,
हंसता रहता हूँ अपने आँसु पी लेता हूँ,
टूटा जो दिल तेरे जाने के बाद,
वो मैं अकेला बैठकर ही सी लेता हूँ।
क्या करेंगे महफिलों में हम बता,
मेरा दिल रहता है काफिलों में अकेला।
ज़िन्दगी के ज़हर को यूँ पी रहे है,
तेरे प्यार के बिना यूँ ज़िन्दगी जी रहे है,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रहे है।
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है,
मैं किसी तरह गुजारूँगा चला जाऊंगा,
तुम परेशाँ न हो बाब-ए-करम-वा न करो,
और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा।
बिखरी किताबें भीगे पलक और ये तन्हाई,
कहूँ कैसे कि मिला मोहब्बत में कुछ भी नहीं।
मेरी है वो मिसाल कि जैसे कोई दरख़्त,
चुप-चाप आँधियों में भी तन्हा खड़ा हुआ।
ना जाने क्यूँ खुद को अकेला सा पाया है,
हर एक रिश्ते में खुद को गँवाया है।
शायद कोई तो कमी है मेरे वजूद में,
तभी हर किसी ने हमें यूँ ही ठुकराया है।
कोई तो इन्तहा होगी मेरे प्यार की खुदा,
कब तक देगा तू इस कदर हमें सजा,
निकाल ले तू इस जिस्म से जान मेरी,
या मिला दे मुझको मेरी दिलरुबा।
उसकी आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियों की आदत सी हो गयी है,
न शिकवा रहा न शिकायत किसी से,
बस एक मोहब्बत है जो इन तन्हाइयों से हो गई है।
कभी जो वादे करती थी,
ज़िदंगी भर साथ निभाने का,
वो एक पल में रिश्ता तोड़ गई,
मुझे यू बीच रह में अकेला छोड़ गई।
हम अंजुमन में सबकी तरफ देखते रहे,
अपनी तरह से कोई हमें अकेला नहीं मिला।
कुछ कर गुजरने की चाह में कहाँ-कहाँ से गुजरे,
अकेले ही नजर आये हम जहाँ-जहाँ से गुजरे।