नफ़रत सिखा दी है तुमने मुझको प्यार से,
भरोसा उठ गया है मेरा ऐतबार से।
मैं फना हो गया अफसोस वो बदला भी नहीं,
मेरी चाहतें से भी सच्ची रही नफरत उसकी।
जो तुम न मिले होते तो बेहतर होता,
खामखाह मोहब्बत से नफ़रत सी हो गई।
नफरत से होने लगी है मोहब्बत से अब,
ज़िन्दगी कही तो पहुचा दे, खत्म होने से पहले।
नफ़रत की बाजार में हम मोहब्बत बेचते है,
कीमत के नाम पे सिर्फ़ दुआ लेते है।
एक नफरत ही तो है जिसे दुनिया
चंद लम्हों में जान लेती है,
वर्ना मोहब्बत का यकीन दिलाने में तो
जिंदगी बीत जाती है।
कभी किसी ने हमें भी चाहत भरा पैगाम लिखा था,
तन, मन, धन सब हमारे नाम लिखा था,
सुना है अब उन्हें हमारे जिक्र से भी नफ़रत है,
जिसने कभी अपने जिस्म-ओ-जाँ पे हमारा नाम लिखा था।
जीते थे कभी हम भी शान से,
महक उठी थी फिजा किसी के नाम से,
पर गुज़रे हैं हम कुछ ऐसे मुकाम से,
की नफरत सी हो गयी है मोहब्बत के नाम से।
वो नफरतें पाले रहे, हम प्यार निभाते रहे,
लो ये जिंदगी भी कट गयी खाली हाथ सी।
नफरते लाख मिली पर मोहब्बत ना मिली,
ज़िन्दगी बीत गयी मगर राहत ना मिली।