दुश्मन भी पेश आए है दिलदार की तरह,
नफ़रत मिली है उनसे सच्चे प्यार की तरह,
दुश्मन भी हो गए है मसीहा सिफ़त जमाल,
मिलते है टूट कर वो गले, पुराने यार की तरह।
दिल टुटना लाज़मी था इस शहर में,
जहाँ हर कोई दिल में नफरत लिये चलता है।
बैठ कर सोचते हैं अब कि क्या खोया क्या पाया,
उनकी नफरत ने तोड़े हैं बहुत मेरी वफा का घर।
अपनी रंगीनियों से तुम मुझको दूर ही रखो,
कहीं ऐसा न हो कि मुझको तुमसे नफ़रत सी हो जाए।
जो लोग कहते है कि उन्हें प्यार से बहुत नफरत है,
ये वही लोग है जिन्हें प्यार में सिर्फ नफरत ही मिलती है।
नफरत एक बहुत बड़ा रोग है
इसलिए दुआ है,
जो भी मुझसे नफरत करते है
वो जल्द ही ठीक हो जाये।
जिसकी अहंकार पुरखो कि कमाई पर पले है,
आज वो हमसे नफरत कि लड़ाई जितने चले है।
कभी उसने भी हमें चाहत का पैगाम लिखा था,
सब कुछ उसने अपना हमारे नाम लिखा था,
सुना है आज उनको हमारे जिक्र से भी नफ़रत है,
जिसने कभी अपने दिल पर हमारा नाम लिखा था।
तूने जो किया गुनाह
हम तुझे माफ़ न करेंगे,
अगर मिल भी गए किसी और जनम में
हम तब भी तुझसे नफरत ही करेंगे।
अपनी नफरतों पे मैं इक किताब लिखूँगा,
तेरे सारे ज़ुल्मों का हिसाब लिखूँगा।
मोहब्बत हो या नफरत हो, दिल की बात,
कहीं ना कहीं साफ झलक हीं जाती है।