खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं,
हमें क्या रोकेंगे ये ज़माने वाले,
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।
सनम तेरी नफरत में वो दम नहीं,
जो मेरी चाहत को मिटा दे,
ये महोब्बत है कोई खेल नहीं,
जो आज हंस के खेल और कल रो के भुला दिया।
खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं,
धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं,
हमें क्या रोकेंगे ये ज़माने वाले,
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।