अभी तक है उसके लौट के आने की उम्मीद,
अभी तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह,
लाख ये चाहा कि उसे भूल जाऊं पर,
हौंसले अपनी जगह, बेबसी अपनी जगह।
उम्मीदें तैरती रहती हैं, कश्तियां डूब जाती हैं,
कुछ घर सलामत रहते हैं, आंधिया जब भी आती हैं,
बचा ले जो हर तूफां से, उसे “आस” कहते हैं,
बड़ा मज़बूत है ये धागा, जिसे “विश्वास” कहते है।
और दोस्ती जो चाहो, चले ता-उम्र,
तो दोस्तों से कोई भी,उम्मीद ना रखें।
दूर हो के तुमसे ज़िंदगी सज़ा सी लगती है,
यह साँसे भी जैसे मुझसे नाराज सी लगती हैं,
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।
अब के उम्मीद के शोले से भी आँखें न जलीं,
जाने किस मोड़ पे ले आई मोहब्बत हमको।
उम्मीद खुद से रखो कभी औरों से नहीं,
यहां खुद के सिवा कोई किसी का नहीं।
अभी उसके लौट आने की उम्मीद बाकी है,
किस तरह से मैं अपनी आँखें मूँद लूँ।
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है,
किसी का भी हो सर क़दमों में अच्छा नहीं लगता।
यहाँ रोटी नही “उम्मीद” सबको जिंदा रखती है,
जो सड़कों पर भी सोते हैं ,सिरहाने ख्वाब रखते हैं।
उम्मीद की किरण के सिवा कुछ नहीं यहाँ,
इस घर में रौशनी का बस यही इंतज़ाम है।