कभी-कभी की नाराजगी प्यार बढ़ा देती है,
लेकिन हर दिन की नाराजगी मान घटा देती है।
दो बातें प्यार की तू भी बोले हमे मनाते हुए,
इस चक्कर में कबसे नाराज़ बैठे है।
नाराज़गी भी मोहब्बत की बुनियाद होती है,
मुलाक़ात से भी प्यारी किसी की याद होती है।
नाराज मत हुआ करो कुछ अच्छा नहीं लगता है,
तेरे हसीन चेहरे पर यह गुस्सा नहीं सजता है,
हो जाती है कभी कभी गलती माफ कर दिया करो,
चाहने वालों से बेदर्दी यह नुस्खा नहीं जचता है।
तुम से रूठ कर तुम ही को सोचता हूँ,
मुझे तो ठीक से नाराज होना भी नहीं आता।
फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ,
मेरे अंदर का इंसान तक ख़फ़ा है।
बेशक मुझपे गुस्सा करने का हक़ है तुम्हे,
पर नाराजगी में हमारा प्यार मत भूल जाना।
उसकी ये मासूम अदा मुझे खूब बहती है,
नाराज मुझसे होती है गुस्सा सबको दिखाती है।
नाराजगी का ये दर्द अब सहा नहीं जाता,
बिन तेरे अब एक पल भी अब रहा नहीं जाता।
इल्जाम चाहे हजार दे दो मेरी सादगी पर,
मगर सच कहूं,
तो गुस्सा आता है तेरी नाराज़गी पर।
नाराजगी उनकी हम सह ना सकेंगे,
वो दूर चले जाए तो हम रह ना सकेंगे,
ताउम्र साथ निभाने का अब कर दिया है वादा,
तो अपनी बातो से अब हम मुकर ना सकेंगे।
यहाँ सब खामोश है कोई आवाज़ नहीं करता,
सच बोलकर कोई किसी को नाराज़ नहीं करता।
मेरी फितरत में नहीं है किसी से नाराज होना,
नाराज वो होतें है जिन्हें अपने आप पर गुरूर होता है।
हर बात खामोशी से मान लेना,
यह भी अंदाज़ होता है नाराज़गी का।
जैसे मैं तुम्हारी हर नाराजगी समझता हूं,
काश वैसे ही तुम मेरी सिर्फ एक मजबूरी समझते।
देखो नाराज़गी मुझसे ऐसे भी जताती है वो,
छुपाती भी कुछ नही जताती भी कुछ नही।
किसी को मनाने से पहले ये जान लेना,
कि वो तुमसे नाराज है या परेशान।
नखरे तेरे, नाराजगी तेरी,
देख लेना, एक दिन जान ले लेगी मेरी।
नाराज़गी हो तो जता लेना,
लेकिन नफ़रत न करना,
चाहत किसी और हो जाएं तो बता देना,
बस बेवफाई न करना।
बेशक मुझपे गुस्सा करने का हक है तुम्हे,
पर नाराजगी में हमारा प्यार मत भूल जाना।
अब पूछते भी नहीं की बात क्यों नहीं करते,
इतनी नाराज़गी भी ठीक नहीं सनम।
तुझसे नहीं तेरे वक्त से नाराज़ हु,
जो तुझे कभी मेरे लिए मिला ही नहीं।
हमें कहाँ है सलीका नाराज़ होने का,
वो मुस्कुरा भी जाते तो हम मान जाते।
नाराज़गी भी है लेकिन किसको दिखाऊं,
प्यार भी है लेकिन किस से जताऊँ,
वो रिश्ता ही क्या जिसमे भरोसा ही नहीं,
अब उनपर हक़ ही नहीं कैसे बताऊं।
आप नाराज़ हों, रूठे, के ख़फ़ा हो जाए,
बात इतनी भी ना बिगड़े कि जुदा हो जाए।
नाराज़गी है न जाने फिर भी ये दिल क्या चाहता है,
ख्याल तुम्हारा अक्सर रूठने के बाद भी आता है।
नाराज मत हुआ करों कुछ अच्छा नहीं लगता है,
तेरे हसीन चेहरे पर यह गुस्सा नहीं सजता है,
हो जाती है कभी-कभी गलती माफ़ कर दिया करो,
चाहने वालों से बेदर्दी यह नुस्खा नहीं जचता है।
तेरी बात को खामोशी से मान लेना,
ये भी अंदाज़ है मेरी नाराज़गी का।
सच्चे प्यार की यहीं निशानी है,
नाराज़गी से दूर उनकीं अलग एक कहानी है।
वो शख्स कुछ नाराज़ सा था मुझ से,
शायद नाराजगी के साथ अकेले घर जा रहा था,
चेहरा भी कुछ खामोश सा था उसका,
लेकिन शोर उसकी आंखो में नजर आ रहा था।