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Home Ummeed Shayari Ummeed Shayari in Hindi - उम्मीद शायरी इन हिंदी

अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला

अब वफा की उम्मीद भी किस से करे भलाअब वफा की उम्मीद भी किस से करे भला,
मिटटी के बने लोग कागजो मे बिक जाते है।

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पता है मैं हमेशा खुश क्यों रहता हूँपता है मैं हमेशा खुश क्यों रहता हूँ?
क्योंकि मैं खुद के सिवा किसी से कोई उम्मीद नहीं रखता।

यहाँ रोटी नही उम्मीद सबको जिंदा रखती हैयहाँ रोटी नही “उम्मीद” सबको जिंदा रखती है,
जो सड़कों पर भी सोते हैं ,सिरहाने ख्वाब रखते हैं।

उम्मीद न रखना किसी से सच्चे प्यार कीउम्मीद न रखना किसी से सच्चे प्यार की,
बहुत प्यार से धोखा देते हैं, शिद्दत से चाहने वाले।

दिल ने एक उम्मीद बरकरार रखी है ऐ दोस्तोंदिल ने एक उम्मीद बरकरार रखी है ऐ दोस्तों,
कही पढ़ लिया था कि सच्ची मोहब्बत लौटकर आती है।

अभी तक है उसके लौट के आने की उम्मीदअभी तक है उसके लौट के आने की उम्मीद,
अभी तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह,
लाख ये चाहा कि उसे भूल जाऊं पर,
हौंसले अपनी जगह, बेबसी अपनी जगह।

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती हैमुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है,
किसी का भी हो सर क़दमों में अच्छा नहीं लगता।

अभी उसके लौट आने की उम्मीद बाकी हैअभी उसके लौट आने की उम्मीद बाकी है,
किस तरह से मैं अपनी आँखें मूँद लूँ।

कच्ची मिट्टी का बना होता है उम्मीदों का घरकच्ची मिट्टी का बना होता है उम्मीदों का घर,
ढह जाता है हकीकत की बरसात में अक्सर।

अबके गुज़रो उस गली से तो जरा ठहर जानाअबके गुज़रो उस गली से तो जरा ठहर जाना,
उस पीपल के साये में मेरी उम्मीद अब भी बैठी है।

कभी बादल,कभी बारिश,कभी उम्मीद के झरनेकभी बादल,कभी बारिश,कभी उम्मीद के झरने,
तेरे अहसास ने छू कर मुझे क्या-क्या बना डाला।

तपती रेत पे दौड़ रहा है दरिया की उम्मीद लिएतपती रेत पे दौड़ रहा है दरिया की उम्मीद लिए,
सदियों से इन्सान का अपने आपको छलना जारी है।

दीवानगी हो अक़्ल हो उम्मीद हो कि आसदीवानगी हो, अक़्ल हो, उम्मीद हो कि आस,
अपना वही है, वक़्त पे जो काम आ गया।

वो उम्मीद ना कर मुझसे जिसके मैं काबिल नहींवो उम्मीद ना कर मुझसे जिसके मैं काबिल नहीं,
खुशियाँ मेरे नसीब में नहीं और यूँ बस,
दिल रखने के लिए मुस्कुराना भी वाज़िब नहीं।

इतना भी मत रुठ मुझसे कि तुझे मनाने की उम्मीदइतना भी मत रुठ मुझसे,
कि तुझे मनाने की उम्मीद ही खत्म हो जाए।

उम्मीद खुद से रखो कभी औरों से नहींउम्मीद खुद से रखो कभी औरों से नहीं,
यहां खुद के सिवा कोई किसी का नहीं।

बीते दिनों की भूली हुई बात की तरहबीते दिनों की भूली हुई बात की तरह,
आँखों में जागता है कोई रात की तरह,
उससे उम्मीद थी की निभाएगा साथ वो,
वो भी बदल गया मेरे हालात की तरह।

दरवेश इस उम्मीद में था के कोई आँखें पढ़ लेगादरवेश इस उम्मीद में था, के कोई आँखें पढ़ लेगा,
भूल बैठा के अब ये ज़बान समझाता कौन है।

ना पूछना कैसे गुज़रता है पल भी तेरे बिनाना पूछना कैसे गुज़रता है पल भी तेरे बिना,
कभी देखने की हसरत में कभी मिलने की उम्मीद में।

ज़्यादा उम्मीद मत लगा इंसान ही तो हैज़्यादा उम्मीद मत लगा इंसान ही तो है,
थोड़ा फासला भी रख दुनिया ही तो है।

बहुत चमक है उन आँखों में अब भीबहुत चमक है उन आँखों में अब भी,
इंतज़ार नहीं बुझा पाया है उम्मीद की लौ।


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