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Khamoshi Shayari in Hindi - ख़ामोशी शायरी इन हिंदी

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मुहँ की बात सुने है कोई
दिल के दर्द को जाने कौन,
आवाजों के बाज़ारों में
ख़ामोशी पहचाने कौन।

हर जगह बैठना इंतज़ार नहीं होता,
किसी की ख़ामोशी का मतलब इंकार नहीं होता,
नज़रें तो हर एक से मिलती है,
हर नज़र का मिलना प्यार नहीं होता।

मेरी खामोशियों पर भी उठ रहे थे सौ सवाल,
दो लफ्ज़ क्या बोले मुझे बेगैरत बना दिया,
हर जज़्बात कोरे कागज़ पर उतार दिया उसने,
वो खामोश भी रहा और सब कुछ कह गया।

खामोशी से गुजरी जा रही है जिन्दगी,
ना खुशियों की रौनक ना गमों का कोई शोर,
आहिस्ता ही सही पर कट जायेगा ये सफ़र,
पर ना आयेगा दिल में उसके सिवा कोई और।

उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी,
ख़ामोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी,
मुझे छूने की ख़्वाहिश कौन करता है,
कि पल भर में बिखर जाऊँगा मैं भी।

बड़ी ख़ामोशी से गुज़र जाते है
हम एक दूसरे के करीब से,
फिर भी दिलों का शोर
सुनाई दे ही जाता है।

जब से ग़मों ने मेरी जिंदगी में
अपनी दुनिया बसाई है,
दो ही साथी बचे है अपने
एक ख़ामोशी और दूसरी तन्हाई है।

चलो अब जाने भी दो,
क्या करोगे दास्ताँ सुनकर,
ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं,
और बयाँ हम से होगा नहीं।

हमारी ख़ामोशी ही हमारी कमजोरी बन गयी,
उन्हें कह न पाए दिल के जज़्बात,
और इस तरह से उनसे इक दूरी बन गयी।

खामोशी सी छा जाती है,
उम्मीद भी खो जाती है,
शिकायत भी नहीं कर पाते,
दर्द हद से ज्यादा है जब बढ़ जाते।

जब खामोश आँखों से बात होती है,
तो ऐसे ही मोहब्बत की शुरुआत होती है,
तेरे ही ख्यालों में खोये रहते है,
न जाने कब दिन और कब रात होती है।

ख्वाइश तो यही है कि तेरी बाँहों में पनाह मिल जाये,
शमा खामोश हो जाये और शाम ढल जाये,
मोहब्बत तू इतना करे कि इतिहास बन जाये,
और तेरी बाँहों से हटने से पहले ये शाम हो जाये।

इस नजर ने उस नजर से बात कर ली,
रहे खामोश मगर फिर भी बात कर ली,
जब मोहब्बत की फ़िज़ा को खुश पाया,
तो दोनों निगाहों ने रो रो कर बरसात कर ली।

रात हुई जब हर शाम के बाद,
तेरी याद आयी हर बात के बाद,
हमने खामोश रह कर भी महसूस किया,
तेरी आवाज़ आयी हर सांस के बाद।

ख़ामोशी को इख़्तियार कर लेना,
अपने दिल को थोड़ा बेकरार कर लेना,
जिन्दगी का असली दर्द लेना हो तो
बस किसी से बेपनाह प्यार कर लेना।

ये खामोशी कुछ तो कहती है,
किसी के दिए दर्द को,
जाने क्यों चुपके से सहती है,
ये खामोशी कुछ तो कहती है।

कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ,
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की,
हर बार हम पर इल्जाम लगा देते हो मुहब्बत का,
कभी खुद से भी पूंछा है इतनी खूबसूरत क्यों हो।

अंधेरे में भी सितारे उग आते,
रात चाँदनी रहती है,
कहीं जलन है दिल में मेरे,
ये खामोशी कुछ तो कहती है।

जाने क्या ख़ता हुई हमसे,
उनकी याद भी हमसे जलती है,
अब आँसू भी आग उगलते है,
ये खामोशी कुछ तो कहती है।

चलो आज खामोश मोहब्बत को एक नाम देते है,
मौसम से पहले कभी परेशान न हो,
अपनी धड़कती इच्छाओं को एक गर्म शाम देते है।

मुझे खामोश राहों में तेरा साथ चाहिए,
तन्हा है मेरा हाथ तेरा हाथ चाहिए,
जूनून ए इश्क को तेरी ही सौगात चाहिए,
मुझे जीने के लिए तेरा ही प्यार चाहिए।

रात आई जब हर शाम के बाद,
सब कुछ के बाद तुम्हारी याद आती है,
हमने खामोश महसूस किया,
हर सांस के बाद तेरी आवाज आती है।

खामोशी से दर्द सहना अच्छा है,
जिनकी याद में दिन भर आंसू बहते है,
उसके सामने कुछ न कहना अच्छा है।

रहना चाहते थे साथ उनके,
पर इस ज़माने ने रहने ना दिया,
कभी वक़्त की खामोशी मे ख़ामोश रहे तो,
कभी उनकी खामोशी ने कुछ कहने ना दिया।

चाहतों ने किया मुझ पर ऐसा असर,
जहाँ देखू में देखु तुझे हमसफ़र,
मेरी खामोशियां मेरी ज़ुबान बन गयी,
मेरी वैचानिया मेरी दास्तान बन गयी।

रात गम सुम है मगर खामोश नहीं,
कैसे कह दूँ आज फिर होश नहीं,
ऐसे डूबा हूँ तेरी आँखों की गहराई में
हाथ में जाम है मगर पीने का होश नहीं।

ख़ामोश फ़िजा थी कोई साया न था,
इस शहर में मुझसा कोई आया न था,
किसी जुल्म ने छीन ली हमसे हमारी मोहब्बत
हमने तो किसी का दिल दुखाया न था।

ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है,
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है,
अपनी खामोशी में मुझे क्यूँ तलाश रहे है हुजूर,
अपने धडकनों से पूछो मेरा एक बसेरा वहां भी है।

ख़ामोशी का राज़ खोलना भी सीखो,
आँखों की ज़बाँ से बोलना भी सीखो,
ना तुमको खबर हुई ना ज़माना समझ सका,
हम चुपके-चुपके तुम पे कई बार मर गए।

ये तुफान यूँ ही नहीं आया है,
इससे पहले इसकी दस्तक भी आई थी,
ये मंजर जो दिख रहा है तेज आंधियों का,
इससे पहले यहाँ एक ख़ामोशी भी छाई थी।

खामोश कोहरे से भरा झील था,
मेरे साथ अक्सर बातें करता था,
एक ख़ामोशी के साथ वो देखता था,
और कोहरे में अक्सर को जाता था।

जब खामोश आँखो से बात होती है,
ऐसे ही मोहब्बत की शुरुआत होती है,
तुम्हारे ही ख़यालो में खोए रहते है,
पता नही कब दिन और कब रात होती है।

रात गुमसुम है मगर खामोश नहीं,
कैसे कह दूँ आज फिर होश नहीं,
ऐसे डूबा हूँ तेरी आँखों की गहराई में
हाथ में जाम है मगर पीने का होश नहीं।

चलो आज खामोश प्यार को इक नाम दे दें,
अपनी मुहब्बत को इक प्यारा सा अंज़ाम दे दें,
इससे पहले की कहीं रूठ न जाएँ मौसम,
अपने धड़कते हुए अरमानों को एक सुरमई शाम दे दें।

चाहतों ने किया मुझ पर ऐसा असर,
जहा देखू में देखु तुझे हमसफ़र,
मेरी खामोशियां मेरी ज़ुबान बन गयी,
मेरी बेचैनिया मेरी दास्तान बन गयी।

मेरी खामोशी थी जो सब कुछ सह गयी,
उसकी यादें ही अब इस दिल में रह गयी,
थी शायद उसकी भी कोई मज़बूरी,
जो मेरी जिंदगी की कहानी अधूरी ही रह गयी।

मुझसे इश्क, मुहब्बत, प्यार न कर,
अपनी ज़िन्दगी को तू बेकार न कर,
खामोश हो जा ऐ दिल,
उसका नाम लेकर खुद को बदनाम ना कर।

हर ख़ामोशी का मतलब इन्कार नही होता,
हर नाकामी का मतलब हार नही होता,
तो क्या हुआ अगर हम तुम्हें पा न सके,
सिर्फ पाने का मतलब प्यार नहीं होता।

रहना चाहते थे साथ उनके,
पर इस ज़माने ने रहने न दिया,
कभी वक़्त की ख़ामोशी में खामोश रहे,
तो कभी उनकी खामोशी ने कुछ कहने न दिया।

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है,
दिल न चाह कर भी खामोश रह जाता है,
कोई सब कुछ कह कर प्यार जताता है,
कोई कुछ न कहकर भी सब बोल जाता है।

वादियों से सूरज निकल आया है,
फिजाओं में नया रंग छाया है,
खामोश क्यों हो अब तो मुस्कुराओ,
आपकी मुस्कान देखने नया सवेरा आया है।

हर इल्जाम का हकदार वो हमे बना जाते है,
हर खता कि सजा वो हमे सुना जाते है,
हम हर बार खामोश रह जाते है,
क्योकि वो अपना होने का हक जता जाते है।

भीगी आँखों से मुस्कुराने का मजा और है,
हँसते हँसते पलके भिगोने का मजा और है,
बात कह के तो कोई भी समझ लेता है,
खामोशी को कोई समझे तो मजा और है।

मुस्कुराने से किसी का किसी से प्यार नहीं होता,
आश लगाने का मतलब सिर्फ इंतजार नहीं होता,
माना खामोश था मै उस वक़्त,
पर मेरी ख़ामोशी का मतलब इंकार नहीं होता।

कौन कहता है खामोशिया खामोश होती है,
खामोशिया को खामोश से सुनो,
कभी कभी ख़ामोशी वो कह देती है,
जिनकी आपको लफ्जो में तलाश होती है।

खामोशियाँ अक्सर कलम से बया नहीं होती,
अँधेरा दिल में हो तो रौशनी से आशना नहीं होती,
लाख जिरह कर लो अल्फाज़ो में खुद को ढूंढ़ने की,
जले हुए रिश्तो से मगर रोशन शमा नहीं होती।

उसके बिना अब चुपचुप रहना अच्छा लगता है,
ख़ामोशी से दर्द को सहना अच्छा लगता है,
मिल कर उस से बिछड़ न जाऊं डरती रहती हूँ,
इसलिए बस दूर ही रहना अच्छा लगता है।

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है,
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है,
हकीकत जिद किये बैठी है चकनाचूर करने को,
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है।

दम तोड़ जाती है हर शिकायत लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है मैंने क्या किया है,
कैसे वो मुझ पर मरता है, ये उसकी ख़ामोशी बता देती है,
उसकी हर अदा, अब भी मुझे दीवाना बना देती है।

खामोशियां तेरी मुझसे बातें करती है,
मेरा हर दर्द और हर आह समझती है,
पता है मजबूर है तू और में भी,
फ़िर भी आंखें तेरे दीदार को तरसती है।




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