अपना कभी उसने हमे बनाया ही नहीं,
झूठा ही सही मगर कभी उसने दिल लगाया ही नहीं,
एक बार को तो हम अपनी गलती भी मान लेते मगर,
गलती क्या थी उसने कभी हमे बताया ही नहीं।
गलती तो हो गयी है, अब क्या मार डालोगे,
माफ़ भी कर दो ऐ सनम, ये गलतफहमी कब तक पालोगे।
जिस गलती की तुम मुझे दे रहे हो सजा,
उस गलती की मुझे अब दे भी दो वजह।
हाँ हो गयी गलती मुझसे में जानता हूँ,
पर फिर में तुझे अपनी जान मानता हूँ।
हमें तो सारे फरिश्ते ही मिले हैं,
कोई गलती करता ही नहीं,
हमेशा हम ही गलत होते हैं।
एक छोटी गलती तेरी उस बड़ी काबिलियत पर उंगली उठा देगी,
जिसे तूने औरों की गलतियों को सूधार कर हासिल की थी।
मेरी नापसंद को, उन्होंने कभी अपनाया नहीं,
बेहद मासूम है वो, जो गलती ढूंढ़ रहे नापसंद में।
गलती निकालने के लिए भेजा चाहिए,
और गलती कबूल करने के लिए कलेजा चाहिए।
कोई व्यक्ति एक बार गलती करें तो – कोई बात नहीं,
दो बार गलती करें तो – होता है, इंसान है,
तीसरी बार गलती करें तो – इनसे दूर ही रहना,
क्योकि ये उसकी गलती नहीं आदत है।
मेरे महबूब इतनी बड़ी सजा,
ना देना हमको गलती की,
तुझ से रूबरू ना हो पाऊं,
ऐसी हमने खता नहीं की।