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Guroor Shayari in Hindi - गुरूर शायरी इन हिंदी

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हो सके तो दिलों में रहना सीखो,
गुरूर में तो हर कोई रहता है।

अपनी जेब का गुरूर अपने सर पर मत चढ़ने देना,
वरना तक़दीर वक़्त नहीं लगाती ज़मीन की धुल चाटने में।

गुरुर में आ के किसी रिश्ते को तोड़ने से अच्छा है,
माफ़ी माँग के वही रिश्ता निभाया जाए।

कहीं का ग़ुस्सा कहीं की घुटन उतारते है,
ग़ुरूर ये कि हम काग़ज़ पे फ़न उतारते है।

रूबरू होने की तो छोड़िये,
लोग गुफ़्तगू से भी कतराने लगे है,
गुरूर ओढ़े है रिश्ते,
अपनी हैसियत पर इतराने लगे है।

बहुत गुरूर था उसको अपनी ऊंचाई पर साहब,
एक आवारा बादल क्या गुजरा बहम टूट गया उसका।

चीजें अक्सर छोटी लगती है,
जब कोई दूर से या गुरूर से देखता है।

गुरूर किस बात का दोस्तो ज़िन्दगी में,
आज माटी के ऊपर कल माटी के नीचे।

किस बात का इतना घमंड,
किस बात का इतना गुरूर,
वक़्त के हाथों बने सब शेर,
वक़्त ही करे सब चकनाचूर।

गुरूर का भार इतना भारी होता है की,
इंसान उसे उठाते-उठाते
दूसरों की नज़रों से ही गिर जाता है।

किरदार में मेरे भले अदाकारियाँ नहीं है,
खुद्दारी हैं गुरूर है पर मक्कारियाँ नहीं हैं।

मेरे सारे कसूरों पर भारी मेरे एक कसूर है,
मैं उसे पसंद करता हूँ बस इसी बात का उसे गुरूर है।

ऊँचाई पर चढ़कर कभी गुरूर मत करना,
ढलान वही से शुरू होती है।

मत इतरा अपने गुरूर के मकान पर,
ये बनता नहीं अगर एक मजदूर न होता।

तेरी अकड़ दो दिन की कहानी है,
मेरा गुरूर तो खानदानी है।

उनको बहुत ग़ुरूर था अपनी वफ़ाओं पर,

मत करना गुरूर अपने आप पर ऐ लोगों,
रब ने ना जाने कितने लोगों को
मिट्टी से बना कर मिट्टी में मिला दिया।

मेरे सारे कसूरों पर भारी मेरा एक कसूर है,
मैं उसे पसंद करता हूँ बस इसी बात का उसे गुरूर है।

गुरूर तो होना था हमारी मोहब्बत को देख कर,
मगर वो अपनी कदर देख कर हमारी कीमत भूल गए।

आज इंसानियत का रंग इतना बेरंग क्यूँ है,
हर शख्स को खुद पर इतना गुरूर क्यूँ है।

वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता है,
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूढ़ता है।

अपने किरदार का किरायदार कभी गुरूर को मत बनाना,
नहीं तो तुम उसके नहीं वो तुम्हारा मालिक बन जाएगा।

गुरूर की हैसियत बस इतनी सी है,
बस एक पल दूर है अब वो टूटने से।

फायदा नहीं इतना पढ़ कर कामयाब होने का,
अगर गर्व और गुरूर में फ़र्क़ ही न पता चले।

चेहरे पर हंसी छा जाती है,
आँखों में सुरूर आ जाता है,
जब तुम मुझे अपना कहते हो,
मुझे खुद पर गुरूर आ जाता है।

गुरूर के भी अजब है किस्से,
आज मिट्टी के ऊपर, कल मिट्टी के नीचे।

मैंने उनका गुरूर कुछ ऐसे तोड़ दिया,
आँखों को चूमा उनकी, और होठों को छोड़ दिया।

न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,
न तारीफ़ तेरी, न मेरा मजाक होगा,
गुरूर न कर शाह-ए-शरीर का,
मेरा भी खाक होगा, तेरा भी ख़ाक होगा।

मै अंधेरा हूं तो अफसोस क्यू करू,
मुझे गुरूर है रोशनी का वजूद मुझसे है।

किस बात का बन्दे तुझे गुरूर है,
कि पैसा और शोहरत चारो ओर है,
एक दिन ये सब कुछ छूट जाएगा,
तब तू किस बात का घमंड दिखाएगा।




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