रूबरू होने की तो छोड़िये,
लोग गुफ़्तगू से भी कतराने लगे है,
गुरूर ओढ़े है रिश्ते,
अपनी हैसियत पर इतराने लगे है।
किस बात का इतना घमंड,
किस बात का इतना गुरूर,
वक़्त के हाथों बने सब शेर,
वक़्त ही करे सब चकनाचूर।
गुरूर का भार इतना भारी होता है की,
इंसान उसे उठाते-उठाते
दूसरों की नज़रों से ही गिर जाता है।
मत करना गुरूर अपने आप पर ऐ लोगों,
रब ने ना जाने कितने लोगों को
मिट्टी से बना कर मिट्टी में मिला दिया।
चेहरे पर हंसी छा जाती है,
आँखों में सुरूर आ जाता है,
जब तुम मुझे अपना कहते हो,
मुझे खुद पर गुरूर आ जाता है।
न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,
न तारीफ़ तेरी, न मेरा मजाक होगा,
गुरूर न कर शाह-ए-शरीर का,
मेरा भी खाक होगा, तेरा भी ख़ाक होगा।
किस बात का बन्दे तुझे गुरूर है,
कि पैसा और शोहरत चारो ओर है,
एक दिन ये सब कुछ छूट जाएगा,
तब तू किस बात का घमंड दिखाएगा।