तुम्हारी थी शरारत मेहंदी से हथेली पे नाम लिखना,
और मुझे रुसवा कर दिया तुम ने यूंही खेलते खेलते।
दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत,
उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं।
रातभर बेचारी मेहंदी पिसती हैं पैरों तले,
क्या करू, कैसे कहूँ रात कब कैसे ढले।
उजली उजली धूप की रंगत भी फ़ीकी पड़ जाती है,
आसमान के हाथों जब शाम की मेहंदी रच जाती है।
किसी और के रंग में रंगने लगे है वो,
मेरी दुनिया बेरंग कर,
किसी गैर की याद में हँसने लगे है वो।
होठों पर हंसी न हो,
तो हाथों में मेहँदी नहीं लगाई जाती है,
इश्क़ किसी और से हो,
तो किसी गैर से शादी नहीं रचाई जाती है।
तेरे मेहँदी लगे हाथों पे मेरा नाम लिखा है,
ज़रा से लफ्ज़ में कितना पैगाम लिखा है।
क्या हुआ जो उसने रचा ली मेहंदी,
हम भी अब सेहरा सजाएंगे,
पता है वो मेरे नसीब में नहीं है,
अब उसकी छोटी बहन को पटाएंगे।
मेहंदी रचाई थी मैने इन हाँथों में,
जाने कब वो मेरी लकीर बन गई।
गेसुओं की नाज़ुक डोर में फंसा ले,
मुझे दिल के कहीं एक कोने में छुपा ले,
मुझे हाथों में तेरे बसा दूंगा मेहंदी की खुशबू,
बस शर्त है मुझे अपनी सांसों में समा ले।