जीत भी मेरी और हार भी मेरी,
तलवार भी मेरी और धार भी मेरी,
ज़िन्दगी ये मेरी कुछ यूं सवार है मुझ पर,
डूबी भी मेरी और पार भी मेरी।
यह जिंदगी बस सिर्फ पल दो पल है,
जिसमें न तो आज और न ही कल है,
जी लो इस ज़िंदगी का हर पल इस तरह,
जैसे बस यही ज़िन्दगी का सबसे हसीं पल है।
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी,
पर चुप इसलिये हूँ कि, जो दिया तूने,
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता।
ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत नहीं कुछ और भी है,
ज़ुल्फ़-ओ-रुखसार की जन्नत नहीं कुछ और भी है,
भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में,
इश्क ही इक हकीकत नहीं कुछ और भी है।
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली,
कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली,
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ,
वो ज़िन्दगी ही क्या जो छाँव-छाँव चली।
खुशी में भी आँख आँसू बहाती रही,
जरा सी बात हमें देर तलक रुलाती रही,
कोई खो के मिल गया तो कोई मिल के खो गया,
ज़िन्दगी हम को बस ऐसे ही आज़माती रही।
अपनी तो ज़िन्दगी की अजीब कहानी है,
जिस चीज़ को चाहा वो ही बेगानी है,
हँसते है दुनिया को हँसाने के लिए वरना,
दुनिया डूब जाये इन आँखों में इतना पानी है।
कल न हम होंगे न कोई गिला होगा,
सिर्फ सिमटी हुयी यादों का सिलसिला होगा,
जो लम्हे है चलो हँसकर बिता दें,
जाने कल जिंदगी का क्या फैसला होगा।
हँसकर जीना ही दस्तूर है ज़िंदगी का,
एक यही किस्सा मशहूर है ज़िंदगी का,
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते,
यही सबसे बड़ा कसूर है ज़िंदगी का।
मायने जिंदगी के बदल गये अब तो,
कई अपने मेरे बदल गये अब तो,
करते थे बात आँधियों में साथ देने की,
हवा चली और सब मुकर गये अब तो।