हाथों की मेहंदी गालों पर निखर कर आई हैं,
तेरे लबों की लाली ने यह महफ़िल सजाई हैं।
मेहँदी का रंग चढ़ा ऐसे मेरे हाथों में,
जैसे तेरी इश्क़ चढ़ा था मेरी सांसों में।
अपने हाथों की लकीरों मे मुझको बसाले,
ये मुमकिन नहीं तो मेहंदी मे मुझको रचाले।
कैसे भूल जाऊँ मैं उसको,
जो चाहता है इस कदर,
हथेली की मेहंदी में लिखा है,
उसने मेरा नाम छिपाकर।
वो आए है महफिल में मेरे, सामने बैठे हैं,
अपने हाथों में मेरा दिल, दबाए बैठे हैं,
हमने उनसे पूछा क्या है तुम्हारे हाथो में,
मुस्कुरा के बोले, मेहंदी लगाए बैठे हैं।
पीपल के पत्तों जैसा मत बनो,
जो वक्त आने पर सूख कर गिर जाते है,
बनना है तो मेहँदी के पत्तों जैसा बनो,
जो पिसकर भी दूसरों की जिंदगी में रँग भर देते है।
मेहंदी ने ग़ज़ब दोनों तरफ़ आग लगा दी,
तलवों में उधर और इधर दिल में लगी है।
मेहेंदी का है ये कहना,
अपने पिया के संग रहना,
मेहंदी के रंग का है ये कहना,
रंग छूटे पर पिया का संग ना छूटे।
वक्त के साथ मेहंदी का रंग उतर जाता है,
पर चाहत के रंग अपने दिल से कैसे उतारोगी।
दोस्ती और मेहंदी में फर्क नही होता,
दोनो एक काम कर जाती है,
जिंदगी मैं खुशियों के रंग देती है,
और खुद फना हो जाती है।