कभी सनम को छोड़ के देख लेना,
कभी शहीदों को याद करके देख लेना,
कोई महबूब नहीं है वतन जैसा यारो,
मेरी तरह देश से कभी इश्क करके देख लेना।
चलो फिर से आज वो नजारा याद कर लें,
शहीदों के दिल में थी वो ज्वाला याद कर लें,
जिसमें बहकर आजादी पहुंची थी किनारे,
देशभक्तों के खून की वो धारा याद कर लें।
अब तो मेरी कलम भी रो पड़ी है,
शहीदों की शहादत लिखते लिखते।
अगर माटी के पुतले देह में ईमान जिन्दा हैं,
तभी इस देश की समृद्धि का अरमान जिन्दा हैं,
ना भाषण से है उम्मीदें ना वादों पर भरोसा हैं,
शहीदों की बदौलत मेरा हिन्दुस्तान जिन्दा है।
सरहद तुम्हें पुकारे तुम्हें आना ही होगा,
कर्ज अपनी मिट्टी का चुकाना ही होगा,
दे करके कुर्बानी अपने जिस्मो-जां की,
तुम्हे मिटना भी होगा मिटाना भी होगा।
फिर उड़ गई नींद मेरी यह सोचकर,
कि जो शहीदों का बहा वो खून,
मेरी नींद के लिए था।
देश के रखवाले है हम,
शेर-ए-जिगर वाले है हम,
शहादत से हमें क्यों डर लगेगा,
मौत के बांहों में पाले हुए है हम।
वतन की मोहब्बत, दिल में दबाये बैठे है,
मरेगे वतन के लिए
शर्त, शहादत से लगाये बैठे हैं।
शहीदों के त्याग को हम बदनाम नही होने देंगे,
भारत की इस आजादी की कभी शाम नही होने देंगे।
उनके हौसले का भुगतान क्या करेगा कोई,
उनकी शहादत का कर्ज देश पर उधार हैं,
आप और हम इसलिए खुशहाल हैं,
क्योकि सीमा पे सैनिक शहादत को तैयार हैं।