है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर,
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं,
है नमन उनको जिनके सामने बौना हिमालय,
जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं।
लड़ें वो वीर जवानों की तरह,
ठंडा खून फ़ौलाद हुआ,
मरते-मरते भी की मार गिराए,
तभी तो देश आज़ाद हुआ।
जन्नत से बढकर वतन कर ले,
जय हिंद जय हिंद, वंदेमातरम्,
अमर शहीदों को नमन कर ले।
आज़ादी की कभी शाम नही होने देंगे,
शहीदों की कुर्बानी बदनाम नही होने देंगे,
बची हो जो इस बूँद भी गर्म लहू की,
तब तक भारत के आंचल नीलाम नही होने देंगे।
तन मन धन अर्पित कर दो अभिनव अभियान को,
वंदन कर लो अमर शहीदों के खूनी बलिदान को,
हिम शिखरों से ऊंची कर दो हिंदुस्तानी शान को,
और वक्त पड़े तो मस्तक दे दो भारत स्वाभिमान को।
शहीद हो गए जो ओढ़ तिरंगा, भारत मा की गोद में,
फिर होंगे ये वीर पैदा, किसी भारत माँ की गोद से।
करीब कभी आओ तो कोई बात बने,
बुझी आग को जलाओ तो कोई बात बने,
सूख गया है जो लहू शहीदों का,
उसमें अपना खून मिलाओ तो कोई बात बने।
यदि प्रेरणा शहीदों से नहीं लेंगे,
तो ये आजादी ढलती हुई साँझ हो जायेगी
और पूजे न गए वीर तो सच कहता हूँ,
कि नौजवानी बाँझ हो जायेगी।
मैं जला हुआ राख नही, अमर दीप हूँ,
जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूँ।
आज वो दिन आया हैं,
जब दिल को मगन कर लो,
हर शहीद को नमन कर लो।
कभी सनम को छोड़ के देख लेना,
कभी शहीदों को याद करके देख लेना,
कोई महबूब नहीं है वतन जैसा यारो,
मेरी तरह देश से कभी इश्क करके देख लेना।
जिसे सींचा लहू से है वो यूँ खो नहीं सकती,
सियासत चाह कर विष बीज हरगिज बो नहीं सकती,
वतन के नाम पर जीना वतन के नाम मर जाना,
शहादत से बड़ी कोई इबादत हो नहीं सकती।
ज़माने भर में मिलते हे आशिक कई,
मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता,
नोटों में भी लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हे कई,
मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता।
मेरे वतन का राष्ट्रगान बंगा से है,
हमारे वतन की शान गंगा से है,
जो वीर मर मिटे देश की मिटटी पर,
उन शहीदों का अभिमान तिरंगा से है।
कुछ पन्ने इतिहास के
मेरे मुल्क के सीने में शमशीर हो गएँ,
जो लड़े, जो मरे वो शहीद हो गएँ,
जो डरे, जो झुके वो वजीर हो गएँ।
अब तो मेरी कलम भी रो पड़ी है,
शहीदों की शहादत लिखते लिखते।
देश के रखवाले है हम,
शेर-ए-जिगर वाले है हम,
शहादत से हमें क्यों डर लगेगा,
मौत के बांहों में पाले हुए है हम।
चूमा था वीरों ने फांसी का फंदा,
यूँ ही नहीं मिली थी आजादी खैरात में।
शहीदों के त्याग को हम बदनाम नही होने देंगे,
भारत की इस आजादी की कभी शाम नही होने देंगे।
सरहद तुम्हें पुकारे तुम्हें आना ही होगा,
कर्ज अपनी मिट्टी का चुकाना ही होगा,
दे करके कुर्बानी अपने जिस्मो-जां की,
तुम्हे मिटना भी होगा मिटाना भी होगा।
अगर माटी के पुतले देह में ईमान जिन्दा हैं,
तभी इस देश की समृद्धि का अरमान जिन्दा हैं,
ना भाषण से है उम्मीदें ना वादों पर भरोसा हैं,
शहीदों की बदौलत मेरा हिन्दुस्तान जिन्दा है।