सावन का हो गया है आगाज़,
आने लगी बूंदों की आवाज़,
चाय-पकोड़ो की प्लेट सजाओ,
और हमें अपना मेहमान बनाओ।
बनके सावन कहीं वो बरसते रहे,
इक घटा के लिए हम तरसते रहे,
आस्तीनों के साये में पाला जिन्हें,
साँप बनकर वही रोज डसते रहे।
इस सावन में हम भीग जायेंगे,
दिल में तमन्ना के फूल खिल जायेंगे,
अगर दिल करे मिलने को तो याद करना,
बरसात बनकर हम बरस जायेंगे।
मौसम का अंदाज़ भाया है,
नए संवेरे साथ लाया है,
दरवाज़ा खोल के देखो,
भीगा हुआ सावन आया है।