खुद भी रोता है, मुझे भी रूला के जाता है,
ये सावन का महीना उसकी याद दिला जाता है।
सावन का हो गया है आगाज़,
आने लगी बूंदों की आवाज़,
चाय-पकोड़ो की प्लेट सजाओ,
और हमें अपना मेहमान बनाओ।
आसमान भी बरसा नहीं अबकी सावन में,
मेरी आँखें बरसती रही दिल के आँगन में।
सावन ने आज मुझे बहुत तरसाया है,
मेरा घर छोड़कर सारे शहर को भिगाया है।
भले ही हम सावन में भीगे ना हो,
मगर दिल को मैंने आंसुओ में डुबोया है।
सावन खुद तो आया है,
साथ में त्यौहार लाया है,
देख कर ये सावन की नजाकत,
मन खुशियों से भर आया है।
ये इकतरफा इश्क़ भी क्या गज़ब ढाता है,
दिल में आग सावन के महीने में लगाता है।
बदली सावन की कोई जब भी बरसती होगी,
दिल ही दिल में वह मुझे याद तो करती होगी,
ठीक से सो न सकी होगी कभी ख्यालों से मेरे
करवटें रात भर बिस्तर पे बदलती होगी।
बनके सावन कहीं वो बरसते रहे,
इक घटा के लिए हम तरसते रहे,
आस्तीनों के साये में पाला जिन्हें,
साँप बनकर वही रोज डसते रहे।
तुम रूठ जाती हो तो सावन बड़ा सताता है,
यह बारिश में बहाने मुझे भी बड़ा रूलाता है।