एक उम्मीद का दिया जल रहा था,
जिसे अश्कों की बारिश ने बुझा दिया,
तनहा अकेले ख़ुशी से जी रहा था,
आज फिर आपकी याद ने रुला दिया।
हम भूल जाये ऐसी दिल की हसरत कहाँ,
वो याद करे हमे इतनी उसे फुर्सत कहाँ,
जिनके चारो तरफ हो अपनों का साथ,
ऐसे सनम को हमारी जरुरत ही कहाँ।
कोई चला गया दूर हमसे तो क्या करें,
कोई मिटा गया सब निशान तो क्या करें,
याद आती है उनकी हमें हद से ज्यादा,
मगर वो याद ना करें तो क्या करें?
दो लफ्ज़ क्या लिखे तेरी याद में हमने,
लोग कहने लगे तू आशिक बहुत पुराना है।
मंजर भी बेनूर थे और फिजायें भी बेरंग थी,
तुम्हारी याद आई और मौसम सुहाना हो गया।
साँस लेने से भी तेरी याद आती है,
हर साँस में तेरी खुशबू बस जाती है,
कैसे कहूँ कि साँस से मैं ज़िंदा हूँ,
जब कि साँस से पहले तेरी याद आती है।
फूलो की तरह हंसती रहो,
कलियोँ की तरह मुस्कुराती रहो,
खुदा से सिर्फ इतना मांगता हूँ,
कि तुम मुझे हमेशा याद आती रहो।
ज़िक्र उनका ही आता है मेरे फ़साने में,
जिनको जान से ज्यदा चाहते थे हम किसी ज़माने में।
तन्हाई में उनकी ही याद का सहारा मिला,
जिनको नाकाम रहे हम भुलानें में।
वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में शिद्दत न रही,
अपनी जिंदगी में हो गए मसरूफ वो इतना,
कि हम को याद करने की फुर्सत न रही।
हर रात रो-रो के उसे भुलाने लगे,
आंसुओं में उस के प्यार को बहाने लगे,
ये दिल भी कितना अजीब है कि,
रोये हम तो वो और भी याद आने लगे।