अकेलेपन का अज़्मी हो भी तो एहसास कैसे हो,
तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है।
क्या करेंगी इस खाली इमारत जैसे दिल का हाल जानके,
क्यूंकी अब तो इसे भी अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
अब मुझे रास आ गया है अकेलापन,
अब आप अपने वक्त का अचार डालिए।
इस चार दिन की जिंदगी में,
हम अकेले रह गए,
मौत का इंतजार करते करते,
अकेलेपन से मोहब्बत कर गए।
हमारे इस अकेलेपन ने हमें जीना सीखा दिया,
बची हमारी ये हसीं तो उसे हमनें पहले ही भुला दिया।
मेरे अकेलेपन ने भी क्या खूब साथ निभाया इस ज़िन्दगी में,
कि अब तो आलम ये है कि हम दीवारों से भी बातें करते हैं।
अकेलापन अब हमे सताता है,
दिन मे सपने ओर रातो को जागता है।
हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
जनाब कैसे मुकम्मल हो उस इश्क़ की दास्तां,
जिसकी फितरत में ही अकेलापन होता है।
अकेलेपन से दिल जाने क्यूँ घबरा रहा है,
मुझें वो तेरी बातें फिर से याद दिला रहा है।