तन्हा दिन, तन्हा रातें,
अकेलेपन में भी, याद आती हैं सिर्फ तेरी बातें,
कोशिश कर लूं छुपाने की,
पर बाहर आ ही जाती हैं जज़्बातें।
दीप रातों को जलाके रखिये,
फूल काँटों में खिलाके रखिये,
जाने कब घेर ले अकेलापन,
एक-दो दोस्त बनाके रखिये।
अब इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
खामोशी एक हालत सी हो गई है,
ना शिकवा ना शिकायत है किसी से,
क्यूंकी अब अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
तन्हाई मे अकेलापन सहा ना जाएगा,
पर महफ़िल मे अकेला रहा ना जाएगा,
उनका साथ ना हो फिर भी जिया जाएगा,
पर उनका साथ कोई और हो ये सहा ना जाएगा।
कल भी हम तेरे थे, आज भी हम तेरे है,
बस फर्क इतना है,
पहले अपनापन था, अब अकेलापन है।
जनाब खुद से खुद की पहचान
करा देता है ये अकेलापन,
लोगो के बीच आपकी एक अलग सी
पहचान बना देता है ये अकेलापन।
वो दूर का सितारा दूर हो कर भी,
अब अपना सा लगता है,
क्यूंकि जनाब मेरे इस अकेलेपन को वो,
अकेलापन मेहसूस ही नहीं होने देता है।
ये अकेलापन क्या होता है,
ये उस पेड़ में बचे आखिरी पत्ते से पूछो जारा,
जिसने बस पतझड़ के आने की उम्मीद लगा रखी है।
अजीब है मेरा अकेलापन,
ना खुश हूँ ना उदास हूँ,
बस खाली हूँ और खामोश हूँ।