जुबान पे उल्फत के अफसाने नहीं आते,
जो बीत गए फिर से वो फसाने नहीं आते,
यार ही होते हैं यारो के हमदर्द,
कोई फ़रिश्ते यहाँ साथ निभाने नहीं आते।
दिल पे ताला, ज़बान पर पहरा,
यानी अब अर्ज़-ए-हाल से भी गए।
जुबान का वजन बहुत कम होता है,
पर बहुत कम लोग इसे सम्हाल पाते है।
नाम उसका ज़ुबान पर आते आते रुक जाता है,
जब कोई मुझसे मेरी आखिरी ख्वाहिश पूछता है।
लफ़्ज़ों के बोझ से थक जाती हैं ज़ुबा कभी कभी,
पता नहीं खामोशी की वजह मज़बूर या समझदारी।
मेरी जुबां तेरा नाम मेरे लबों पर नही आने देती,
कहीं तुम बेचैन ना हो जाओ मेरी रूह तुम्हे बुलाने नही देती,
जिस दिन मेरी जुबां से तुम्हारा नाम गलती से निकल जाता है,
उस दिन मेरी नींद भी मुझे सिरहाने नहीं देती।
अपनी ज़ुबान से में दूसरों के ऐब बया नहीं करता,
क्यूंकि ऐब मुझे में भी और जुबां औरों में भी है।
कसूर तो था ही इन निगाहों का,
जो चुपके से दीदार कर बैठा,
हमने तो खामोश रहने की ठानी थी,
पर बेवफा ये ज़ुबान इज़हार कर बैठा।
इश्क ऐसी जुबान है प्यारे,
जिसे गूंगा भी बोल सकता है।
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी ज़बान से,
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है।