अपनी जुबान से दूसरों के ऐब बयां करने से पहले,
ये सोच लेना की ऐब तुम में भी है,
और जुबान दूसरों के पास भी है।
आपकी मुस्कान हमारी कमजोरी है,
कह ना पाना हमारी मजबूरी है,
आप क्यों नहीं समझते इस जज़्बात को,
क्या खामोशियों को ज़ुबान देना ज़रूरी है।
रिश्तो के बजार में आजकल,
वो लोग हमेशा अकेले पाये जाते हैं साहब,
जो दिल और जुबान के सच्चे होते हैं।
इंसान एक दुकान है,
और जुबान उसका ताला,
ताला खुलता है तभी मालूम होता है कि,
दुकान सोने की है या कोयले की।
लहजे में बदजुबानी,
चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं,
जिनके खुद के बहीखाते बिगड़े है,
वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं।
कसूर तो था ही इन निगाहों का,
जो चुपके से दीदार कर बैठा,
हमने तो खामोश रहने की ठानी थी,
पर बेवफा ये ज़ुबान इज़हार कर बैठा।