मेरी जुबां तेरा नाम मेरे लबों पर नही आने देती,
कहीं तुम बेचैन ना हो जाओ मेरी रूह तुम्हे बुलाने नही देती,
जिस दिन मेरी जुबां से तुम्हारा नाम गलती से निकल जाता है,
उस दिन मेरी नींद भी मुझे सिरहाने नहीं देती।
लोग, न जाने किस तरह,
संभालेगें ये जिंदगी के रिश्ते,
खुद की ज़रा सी जुबान तक,
तो संभाली नहीं जाती।
जुबान का वजन बहुत कम होता है,
पर बहुत कम लोग इसे सम्हाल पाते है।
बेहतरीन इंसान अपनी मीठी जुबान से ही जाना जाता है,
वरना अच्छी बातें तो दीवारों पर भी लिखी होती है।
तेरी ज़ुबान ने कुछ कहा तो नहीं था,
फिर ना जाने क्यों मेरी आँख नम हो गयी।
बहुत खूब है यूँ आपका शब्दों में मुझे लिखना,
वरना तो सबने मुझे सदा बेजुबां ही माना है।
मशहूर राज़-ए-इश्क़ है किस के बयान से,
मेरी ज़बान से कि तुम्हारी ज़बान से।
अकेले में अपने विचारो पर नियंत्रण रखिए,
और लोगों के बीच अपने जुबां पर।
आपकी मुस्कान हमारी कमजोरी है,
कह ना पाना हमारी मजबूरी है,
आप क्यों नहीं समझते इस जज़्बात को,
क्या खामोशियों को ज़ुबान देना ज़रूरी है।
लफ़्ज़ों की दहलीज पर घायल जुबान है,
कोई तन्हाई से तो कोई महफ़िल से परेशान है।