लहजे में बदजुबानी,
चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं,
जिनके खुद के बहीखाते बिगड़े है,
वो मेरा हिसाब लिए फिरते हैं।
आपकी मुस्कान हमारी कमजोरी है,
कह ना पाना हमारी मजबूरी है,
आप क्यों नहीं समझते इस जज़्बात को,
क्या खामोशियों को ज़ुबान देना ज़रूरी है।
कसूर तो था ही इन निगाहों का,
जो चुपके से दीदार कर बैठा,
हमने तो खामोश रहने की ठानी थी,
पर बेवफा ये ज़ुबान इज़हार कर बैठा।
लोग, न जाने किस तरह,
संभालेगें ये जिंदगी के रिश्ते,
खुद की ज़रा सी जुबान तक,
तो संभाली नहीं जाती।