कितने मजबूर हो गए होंगे,
अनकही बात जुबान पे लाने को,
खुल के हंसना तो सब को आता है,
लोग तरसते है एक बहाने को।
पत्ते-पत्ते पे दस्तखत उसके,
गुच्छे गुच्छे सा फूलता है वो,
खिल उठे पीले फूल सरसो के,
कैसा सावन सा हंस पड़ा है वो।
मेरी हंसी में भी कई गम छिपे है,
डरता हूँ बताने से,
कही सबका प्यार से भरोसा न उठ जाये।
हँसी तेरी मेरे दिल को सींचती है,
दूर जाना चाहूँ भी मगर ये,
हँसी मुझे बार बार तेरी तरफ खींचती है।
किसी ने मुझसे पूछा इतना दर्द क्यों लिखते हो,
ऐसा भी क्या गिला?
मैंने भी मुस्कुरा कर कह दिया,
कोई दे जाये इस चेहरे को हसी, ऐसा भी तो कोई नहीं मिला।
अजीब दुनिया है,
खुद को हंसी आती नहीं,
औरों की हँसी भाती नहीं।
हंसी के रास्ते पे चला करो,
खुशियों की महक लिया करो,
जहां तुम्हे गम नज़र आए,
वहां इस दोस्त को याद किया करो।
राज-ए-हँसी का गर में तुम्हे बताऊँगा,
सोचता हूँ शायद में,
तेरे दर्द भरे जख्मो को और दबाऊंगा।