दीप रातों को जलाके रखिये,
फूल काँटों में खिलाके रखिये,
जाने कब घेर ले अकेलापन,
एक-दो दोस्त बनाके रखिये।
तुम्हारे जाने के बाद हम कभी,
अकेलापन महसूस ही नहीं कर पायें,
क्या करते कमबख्त तनहाईयों को,
मोहब्बत जो हो गई है हमसे।
तन्हाई मे अकेलापन सहा ना जाएगा,
पर महफ़िल मे अकेला रहा ना जाएगा,
उनका साथ ना हो फिर भी जिया जाएगा,
पर उनका साथ कोई और हो ये सहा ना जाएगा।
मेरा अकेलापन ही मेरा साथी हैं,
मुझे किसी और की ज़रूरत नहीं,
क्या करे किसी से रिश्ता जोड़ कर,
जब की मुझे जिंदगी में और दर्द की ज़रूरत नहीं।
सुनो तुम्हारे जाने के बाद हम कभी,
अकेलापन महसूस ही नहीं कर पायें,
क्या करते कमबख्त तनहाईयों को,
मोहब्बत जो हो गई है हमसे।
ये अकेलापन सभी को काटता है,
पर न कोई इसको बाँटता है,
अगर जो कोई चाहे इसको बाँटना,
बुरा भला कह कर सब कोई डाँटता है।
अब इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
खामोशी एक हालत सी हो गई है,
ना शिकवा ना शिकायत है किसी से,
क्यूंकी अब अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।