ये अकेलापन सभी को काटता है,
पर न कोई इसको बाँटता है,
अगर जो कोई चाहे इसको बाँटना,
बुरा भला कह कर सब कोई डाँटता है।
तुम्हारे जाने के बाद हम कभी,
अकेलापन महसूस ही नहीं कर पायें,
क्या करते कमबख्त तनहाईयों को,
मोहब्बत जो हो गई है हमसे।
अजीब है मेरा अकेलापन,
ना खुश हूँ ना उदास हूँ,
बस खाली हूँ और खामोश हूँ।
कल भी हम तेरे थे, आज भी हम तेरे है,
बस फर्क इतना है,
पहले अपनापन था, अब अकेलापन है।
तन्हाइयों के घरौंदे में हम बस गए,
जो अकेलेपन की दास्तां सुनाई,
तो मेरी बातों पर लोग हँस दिए।
जनाब खुद से खुद की पहचान
करा देता है ये अकेलापन,
लोगो के बीच आपकी एक अलग सी
पहचान बना देता है ये अकेलापन।
जनाब इतने मतलबी भी मत बन जाओ,
कि तुम्हें अब दूसरों का अकेलापन भी नजर ना आ पाए,
और इतना अच्छा भी मत बन जाओ,
कि तुम्हें दूसरों की बुराई भी नजर ना आ पाए।
ये अकेलापन क्या होता है,
ये उस पेड़ में बचे आखिरी पत्ते से पूछो जारा,
जिसने बस पतझड़ के आने की उम्मीद लगा रखी है।
तन्हा दिन, तन्हा रातें,
अकेलेपन में भी, याद आती हैं सिर्फ तेरी बातें,
कोशिश कर लूं छुपाने की,
पर बाहर आ ही जाती हैं जज़्बातें।