अकेलेपन से कोई बैर नही है मुझे,
डरता हूँ की कोई याद ना आ जाये मुझे।
अकेलापन दिलजलों को खूब भाता है,
यादों के मारों को सुकून, तन्हाई में ही मिल पाता है।
उस की जुस्तजू, इंतज़ार और अकेलापन,
थक कर मुस्कुरा देता हूँ जब रोया नहीं जाता।
हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
तन्हा दिन, तन्हा रातें,
अकेलेपन में भी, याद आती हैं सिर्फ तेरी बातें,
कोशिश कर लूं छुपाने की,
पर बाहर आ ही जाती हैं जज़्बातें।
तन्हाइयों के घरौंदे में हम बस गए,
जो अकेलेपन की दास्तां सुनाई,
तो मेरी बातों पर लोग हँस दिए।
लिखने का कोई शौक नहीं मुझे,
बस खुद को यु उलझाए रखा है इसमें,
क्योंकि इस अकेलेपन में तो बस,
सिर्फ उसकी याद आती हैं।
मेरा अकेलापन ही मेरा साथी हैं,
मुझे किसी और की ज़रूरत नहीं,
क्या करे किसी से रिश्ता जोड़ कर,
जब की मुझे जिंदगी में और दर्द की ज़रूरत नहीं।
सुबह से रात और रात से यु ही सुबह हो जाती है,
ये अकेलापन खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है।
सुन, अकेला रहना और अकेलेपन में रहना,
वैसा ही है जैसे की मुस्कुराना और गम में रहना।