हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
क्या करेंगी इस खाली इमारत जैसे दिल का हाल जानके,
क्यूंकी अब तो इसे भी अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
ख्वाब बोये थे, और अकेलापन काटा है,
इस मोहब्बत में यारो, बहुत घाटा है।
क्या कहें जनाब कि अकेलापन क्यों इतना भाता है,
खुद से बातों में अक्सर यू ही वक्त गुज़र जाता है।
जनाब कैसे मुकम्मल हो उस इश्क़ की दास्तां,
जिसकी फितरत में ही अकेलापन होता है।
उफ़, अकेलापन ये कितना बढ़ गया है,
सबके मोबाइल में केवल सेल्फ़ियाँ हैं।
मेरे अकेलेपन ने भी क्या खूब साथ निभाया इस ज़िन्दगी में,
कि अब तो आलम ये है कि हम दीवारों से भी बातें करते हैं।
अकेलेपन का अज़्मी हो भी तो एहसास कैसे हो,
तसलसुल से हमारी शाम-ए-तन्हाई सफ़र में है।
अब इंतज़ार की आदत सी हो गई है,
खामोशी एक हालत सी हो गई है,
ना शिकवा ना शिकायत है किसी से,
क्यूंकी अब अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
तन्हा दिन, तन्हा रातें,
अकेलेपन में भी, याद आती हैं सिर्फ तेरी बातें,
कोशिश कर लूं छुपाने की,
पर बाहर आ ही जाती हैं जज़्बातें।