लिखने का कोई शौक नहीं मुझे,
बस खुद को यु उलझाए रखा है इसमें,
क्योंकि इस अकेलेपन में तो बस,
सिर्फ उसकी याद आती हैं।
हमारे इस अकेलेपन ने हमें जीना सीखा दिया,
बची हमारी ये हसीं तो उसे हमनें पहले ही भुला दिया।
सुन, अकेला रहना और अकेलेपन में रहना,
वैसा ही है जैसे की मुस्कुराना और गम में रहना।
हम अकेले नही रहते अकेलापन साथ आ जाता है,
हम रोते नही आँखो से दिल का दर्द बयान हो जाता है,
अकेला तो चाँद भी रह जाता है तारो की महफ़िल मे,
जब मानने वाला खुद ही रूठ जाता है।
क्या करेंगी इस खाली इमारत जैसे दिल का हाल जानके,
क्यूंकी अब तो इसे भी अकेलेपन से मोहब्बत सी हो गई है।
अकेलापन दिलजलों को खूब भाता है,
यादों के मारों को सुकून, तन्हाई में ही मिल पाता है।
ये अकेलापन सभी को काटता है,
पर न कोई इसको बाँटता है,
अगर जो कोई चाहे इसको बाँटना,
बुरा भला कह कर सब कोई डाँटता है।
अकेलेपन से दिल जाने क्यूँ घबरा रहा है,
मुझें वो तेरी बातें फिर से याद दिला रहा है।
भीड़ में ये अकेलापन मुझसे मिलने जब आया,
क्या है ये अकेलापन मुझे समझ में तब आया।
सूने घरों में रहने वाले कुंदनी चेहरे कहते हैं,
सारी सारी रात अकेलेपन की आग जलाती है।